माला में 108 मनके क्यों होते हैं और महत्व, mala

Sanatan Diary
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                 माला में 108 मनके क्यों होते हैं और महत्व, mala

माला में 108 मनके क्यों होते हैं और महत्व, mala
भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा में जपमाला का विशेष महत्व है। चाहे मंत्रजप हो, ध्यान साधना हो या भक्ति का मार्ग—माला साधक के लिए एक साधन है जो मन को एकाग्र करता है और साधना को व्यवस्थित बनाता है। लेकिन सबसे रोचक प्रश्न यह है कि माला में हमेशा 108 मनके ही क्यों होते हैं? न 104, न 110, बल्कि 108 ही। इस संख्या के पीछे गहरा धार्मिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रहस्य छिपा है।
1. धार्मिक दृष्टिकोण  

नक्षत्र और चरण: वैदिक ज्योतिष में 27 नक्षत्र बताए गए हैं। प्रत्येक नक्षत्र के 4 चरण होते हैं। 27 times 4 = 108 

इस प्रकार 108 संख्या सम्पूर्ण ब्रह्मांडीय चक्र का प्रतिनिधित्व करती है। ग्रह और राशियाँ: 9 ग्रह और 12 राशियों का गुणनफल भी 108 होता है। 9 times 12 = 108 

  इसका अर्थ है कि माला के 108 दाने सम्पूर्ण ज्योतिषीय प्रभावों को संतुलित करने का प्रतीक हैं।  
सूर्य की कलाएँ: सूर्य की 108 कलाएँ मानी जाती हैं। माला के 108 दाने इन कलाओं के साथ साधक को जोड़ते हैं।  
2. वैज्ञानिक और योगिक दृष्टिकोण  

सांसों का चक्र: एक दिन में मनुष्य लगभग 21,600 बार सांस लेता है। यदि हर 100 सांस पर ईश्वर का स्मरण किया जाए तो कुल 216 बार जप होगा। इसे 2 से विभाजित करने पर 108 आता है।  

योग और ऊर्जा केंद्र: योगशास्त्र में कहा गया है कि शरीर में 108 प्रमुख ऊर्जा बिंदु (नाड़ी) होते हैं। माला के 108 दाने इन ऊर्जा केंद्रों को सक्रिय करने का प्रतीक हैं।  

पृथ्वी और सूर्य का संबंध: पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी सूर्य के व्यास की लगभग 108 गुना है। इसी प्रकार पृथ्वी और चंद्रमा का संबंध भी 108 से जुड़ा है। यह संख्या ब्रह्मांडीय संतुलन को दर्शाती है।  

3. आध्यात्मिक महत्व  

पूर्णता का प्रतीक: 108 संख्या को पूर्णता और समग्रता का प्रतीक माना जाता है। जब साधक 108 बार मंत्र जप करता है तो वह सम्पूर्णता की ओर अग्रसर होता है।  

एकाग्रता और अनुशासन: माला के 108 दाने साधक को अनुशासन में रखते हैं। हर दाना एक कदम है जो साधक को आत्मज्ञान की ओर ले जाता है। (dharm) 

सुमेरु दाना: माला में 109वाँ दाना ‘सुमेरु’ कहलाता है। इसे पार नहीं किया जाता, बल्कि जप पूरा होने पर माला को उलटकर पुनः जप शुरू किया जाता है। यह साधना में विनम्रता और संतुलन का प्रतीक है।  
4. विभिन्न परंपराओं में 108 का महत्व  
हिंदू धर्म: मंत्रजप, रुद्राक्ष माला और ध्यान साधना में 108 का प्रयोग।  
बौद्ध धर्म: बौद्ध परंपरा में भी 108 दोषों और 108 पुण्यों का उल्लेख मिलता है।  
जैन धर्म: जैन साधना में 108 गुणों का वर्णन है।  
योग: सूर्य नमस्कार में 108 बार अभ्यास करने की परंपरा है। 
 

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5. व्यावहारिक दृष्टिकोण  sanatan

जप की गिनती: माला साधक को गिनती की चिंता से मुक्त करती है। 108 दाने एक पूर्ण चक्र का संकेत देते हैं।  
मानसिक शांति: माला जपने से मन शांत होता है, इंद्रियाँ नियंत्रित होती हैं और ध्यान गहरा होता है।  
अनुभवजन्य लाभ: साधक अनुभव करता है कि 108 बार जप करने से मन में स्थिरता और आत्मिक शक्ति बढ़ती है।  

6. प्रतीकात्मक अर्थ  

1 = ईश्वर या सत्य 

0 = शून्यता या ब्रह्म 

8 = अनंतता या अनंत चक्र  

इस प्रकार 108 संख्या ईश्वर, ब्रह्म और अनंतता का संगम है।  

संक्षिप्त उत्तर: 

जपमाला में 108 मनके इसलिए होते हैं क्योंकि यह संख्या वैदिक गणित, ज्योतिष, योग और आध्यात्मिक साधना में अत्यंत पवित्र मानी जाती है। 108 का संबंध 27 नक्षत्रों के 4 चरणों, 9 ग्रहों और 12 राशियों, सूर्य की कलाओं और सांसों के चक्र से जुड़ा है। इसीलिए माला के 108 दाने साधक को पूर्णता, एकाग्रता और दिव्यता की ओर ले जाते हैं। 

7. निष्कर्ष  

माला के 108 मनके केवल गिनती का साधन नहीं हैं, बल्कि ब्रह्मांडीय रहस्य, आध्यात्मिक अनुशासन और वैज्ञानिक संतुलन का प्रतीक हैं। जब साधक माला के 108 दानों पर मंत्र जप करता है, तो वह न केवल ईश्वर से जुड़ता है बल्कि अपने भीतर की ऊर्जा और ब्रह्मांडीय शक्ति से भी सामंजस्य स्थापित करता है।  (digital  diary)

इसलिए माला में 108 मनके होना साधना की पूर्णता, अनुशासन और दिव्यता का प्रतीक है।

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