मार्कण्डेय पुराण रचना, मंत्र एवं पूजा विधि का संपूर्ण विवरण
मार्कण्डेय पुराण सनातन धर्म के अठारह महापुराणों में एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह पुराण केवल धार्मिक कथा-संग्रह नहीं है, बल्कि दर्शन, भक्ति, कर्म, योग, देवी उपासना और सामाजिक आदर्शों का विस्तृत ज्ञान कराता है। विशेष रूप से देवी महात्म्य (दुर्गा सप्तशती) के कारण यह पुराण शक्ति उपासना का आधार ग्रंथ माना जाता है। इस लेख में हम मार्कण्डेय पुराण की रचना, रचयिता, विषयवस्तु, प्रमुख कथाएँ, मंत्र, पूजा विधि और धार्मिक महत्व को विस्तार से समझेंगे।
मार्कण्डेय पुराण की रचना महर्षि मार्कण्डेय द्वारा मानी जाती है। महर्षि मार्कण्डेय को चिरंजीवी ऋषि कहा जाता है, जिन्हें भगवान शिव का अनन्य भक्त माना जाता है। इस पुराण का संवादात्मक रूप महर्षि जैमिनि और पक्षियों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है, जो इसे अन्य पुराणों से अलग बनाता है।
रचना काल
विद्वानों के अनुसार मार्कण्डेय पुराण की रचना लगभग 250 ईसा पूर्व से 400 ईस्वी के बीच मानी जाती है। हालांकि इसमें वर्णित कई कथाएँ वैदिक और उत्तरवैदिक काल से भी जुड़ी हुई प्रतीत होती हैं।
मार्कण्डेय पुराण की संरचना
मार्कण्डेय पुराण की विषयवस्तु अत्यंत व्यापक है। इसमें केवल देवी-देवताओं की कथाएँ ही नहीं, बल्कि मानव जीवन के लिए आदर्श आचरण, धर्म और मोक्ष का मार्ग भी बताया गया है।
सृष्टि और मनु कथा
पुराण में ब्रह्मा द्वारा सृष्टि रचना, मनुओं की उत्पत्ति और उनके काल में घटित घटनाओं का विस्तार से वर्णन मिलता है। यह भाग ब्रह्मांड की उत्पत्ति और मानव समाज की संरचना को समझाने में सहायक है।
राजवंशों और राजधर्म
मार्कण्डेय पुराण में सूर्यवंश और चंद्रवंश के राजाओं का वर्णन मिलता है। साथ ही राजधर्म, प्रजा पालन, न्याय और करुणा के सिद्धांतों को भी स्पष्ट किया गया है।
समाज और धर्म
इस पुराण में वर्णाश्रम धर्म, दान, व्रत, तीर्थ और सदाचार का महत्व बताया गया है। गृहस्थ, ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ और संन्यासी – सभी आश्रमों के कर्तव्यों का वर्णन मिलता है।
देवी महात्म्य का महत्व
मार्कण्डेय पुराण का सबसे प्रसिद्ध और पूजनीय अंश देवी महात्म्य है, जिसे दुर्गा सप्तशती या चंडी पाठ भी कहा जाता है। इसमें 700 श्लोक हैं और यह 13 अध्यायों में विभाजित है।
देवी महात्म्य में वर्णित कथाएँ, मधु और कैटभ का वध, महिषासुर मर्दिनी कथा, शुम्भ-निशुम्भ का संहार, ये कथाएँ देवी की शक्ति, करुणा और रक्षक स्वरूप को दर्शाती हैं।, मार्कण्डेय पुराण के प्रमुख मंत्र, मार्कण्डेय पुराण में अनेक मंत्रों का उल्लेख मिलता है, विशेषकर देवी उपासना से जुड़े मंत्र अत्यंत प्रसिद्ध हैं।
दुर्गा गायत्री मंत्र
कन्याकुमारि धीमहि
तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्॥
चंडी मंत्र
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥
महामृत्युंजय से संबंध
हालांकि महामृत्युंजय मंत्र ऋग्वेद से संबंधित है, लेकिन मार्कण्डेय ऋषि से इसका विशेष संबंध माना जाता है, इसलिए इस पुराण में इसके भावार्थ का उल्लेख मिलता है।
मार्कण्डेय पुराण में वर्णित पूजा विधि:- मार्कण्डेय पुराण में देवी पूजा की विधि को अत्यंत सरल और प्रभावी बताया गया है। वी पूजा की सामान्य विधि, प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें, पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें, देवी दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें, दीप, धूप, पुष्प और नैवेद्य अर्पित करें, दुर्गा सप्तशती का पाठ करें, अंत में क्षमा प्रार्थना करें।
नवरात्रि के समय देवी महात्म्य का पाठ, हवन और कन्या पूजन विशेष फलदायी माना गया है।
मार्कण्डेय पुराण का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
यह पुराण शक्ति उपासना का आधार ग्रंथ होने के साथ-साथ जीवन में संतुलन, साहस और धर्म के पालन की प्रेरणा देता है। देवी को केवल युद्ध की शक्ति नहीं, बल्कि ज्ञान और करुणा का स्वरूप भी बताया गया है।
मार्कण्डेय पुराण से मिलने वाली शिक्षाएँ, धर्म का पालन ही जीवन का आधार है, नारी शक्ति का सम्मान आवश्यक है, अहंकार का अंत निश्चित है, भक्ति और कर्म से मोक्ष संभव है।
निष्कर्ष
मार्कण्डेय पुराण एक ऐसा ग्रंथ है जो भक्ति, शक्ति और ज्ञान का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है। देवी महात्म्य के माध्यम से यह पुराण हमें सिखाता है कि जब भी अधर्म बढ़ता है, तब शक्ति का प्राकट्य अवश्य होता है। धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से यह पुराण अत्यंत महत्वपूर्ण है और प्रत्येक सनातन अनुयायी के लिए अध्ययन योग्य है।

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