स्कंद पुराण : स्वरूप, रचना, मंत्र, काल skand puran
सनातन धर्म के विशाल पुराणिक साहित्य में स्कंद पुराण का स्थान अत्यंत विशिष्ट है। यह न केवल आकार में सबसे विशाल माना जाता है, बल्कि विषय-वस्तु की दृष्टि से भी यह धर्म, भक्ति, ज्ञान, कर्म, तीर्थ, व्रत, कथा और दर्शन सबका समन्वित रूप प्रस्तुत करता है।
स्कंद पुराण को भगवान शिव के पुत्र भगवान स्कंद (कार्तिकेय/षडानन/कुमार/मुरुगन) से जोड़ा जाता है, परंतु इसका मूल उपदेश शिव-तत्त्व से ही प्रवाहित होता है। यह ग्रंथ एक जीवंत परंपरा की भाँति है, जहाँ कथा, संवाद, उपदेश और तीर्थ-वर्णन एक-दूसरे में घुलकर धर्म के व्यापक अर्थ को उद्घाटित करते हैं।
स्कंद पुराण का अर्थ और नामकरण
“स्कंद” शब्द का अर्थ है—जो प्रवाहित हो, जो उत्पन्न होकर आगे बढ़े। यह सृजनशील शक्ति का द्योतक है। स्कंद पुराण में स्कंद का अर्थ केवल एक देवता नहीं, बल्कि वह दिव्य शक्ति है जो अज्ञान के अंधकार को चीरकर ज्ञान का मार्ग प्रशस्त करती है।
पुराण के अनुसार—
जहाँ धर्म की गति रुक जाए, वहाँ स्कंद की शक्ति प्रवाहित होती है।
इसी कारण इसे स्कांदिक परंपरा का मूल ग्रंथ भी कहा गया। दक्षिण भारत में इसे मुरुगन-भक्ति का आधार माना गया, वहीं उत्तर भारत में यह शिव-भक्ति और शाक्त परंपरा से जुड़ा रहा।
इसी कारण इसे स्कांदिक परंपरा का मूल ग्रंथ भी कहा गया। दक्षिण भारत में इसे मुरुगन-भक्ति का आधार माना गया, वहीं उत्तर भारत में यह शिव-भक्ति और शाक्त परंपरा से जुड़ा रहा।
स्कंद पुराण की रचना किसने की?
पुराणिक परंपरा के अनुसार, सभी महापुराणों की रचना का श्रेय महर्षि वेदव्यास को दिया जाता है। स्कंद पुराण भी इसी परंपरा में व्यास द्वारा संकलित माना गया है। परंतु स्कंद पुराण स्वयं यह संकेत देता है कि यह एक संवादात्मक ग्रंथ है, जिसमें अनेक ऋषि-मुनि, देवता और स्वयं भगवान शिव उपदेश देते हैं।
मुख्य संवाद इस प्रकार हैं:
भगवान शिव और पार्वती का संवाद
भगवान शिव और नंदी का संवाद
महर्षि नारद और सनत्कुमार का संवाद
ऋषियों और सूतजी (लोमहर्षण) का संवाद
भगवान शिव और नंदी का संवाद
महर्षि नारद और सनत्कुमार का संवाद
ऋषियों और सूतजी (लोमहर्षण) का संवाद
इससे स्पष्ट होता है कि स्कंद पुराण कोई एककालिक रचना नहीं, बल्कि लंबे समय में विकसित हुआ जीवंत ग्रंथ है।
स्कंद पुराण की रचना-प्रक्रिया
स्कंद पुराण की रचना मंत्रों से नहीं, बल्कि पुराणिक गद्य-पद्य मिश्रित शैली में हुई है। इसमें वैदिक मंत्रों की प्रत्यक्ष संख्या कम है, परंतु वैदिक भाव सर्वत्र विद्यमान है।
इस ग्रंथ की भाषा संस्कृत है, परंतु उसकी ध्वनि सरल, प्रवाहमयी और कथा-प्रधान है। यही कारण है कि इसे लोक में प्रचार योग्य माना गया।
पुराण स्वयं कहता है:
न मंत्रबद्ध न शुष्क वेद-वाक्य,
कथा-वृत्त से प्रकट हो धर्म-सत्य।
कथा-वृत्त से प्रकट हो धर्म-सत्य।
स्कंद पुराण कब रचा गया?
इस प्रश्न का उत्तर सीधा नहीं है। विद्वानों के अनुसार स्कंद पुराण की रचना ईसा पूर्व अंतिम शताब्दियों से लेकर ईसा की प्रारंभिक सहस्राब्दी तक क्रमिक रूप से होती रही।
कारण:
इसमें गुप्तकालीन तीर्थों का उल्लेख है, कुछ अध्यायों में दक्षिण भारतीय शैव परंपरा का विस्तार मिलता है, कुछ भाग प्राचीन उत्तर भारतीय वैदिक परंपरा से जुड़े हैं,
अतः यह कहना उचित होगा कि स्कंद पुराण कालातीत है, किस एक काल में बंधा नहीं।
अतः यह कहना उचित होगा कि स्कंद पुराण कालातीत है, किस एक काल में बंधा नहीं।
स्कंद पुराण की संरचना
स्कंद पुराण कई खंडों (खंड/संहिता) में विभक्त है। परंपरागत रूप से इसके प्रमुख खंड इस प्रकार माने जाते हैं:
1. माहेश्वर खंड
2. वैष्णव खंड
3. ब्राह्म खंड
4. काशी खंड
5. अवंती खंड
6. नागर खंड
7. प्रभास खंड
2. वैष्णव खंड
3. ब्राह्म खंड
4. काशी खंड
5. अवंती खंड
6. नागर खंड
7. प्रभास खंड
इन खंडों में तीर्थों, व्रतों, शिव-लीलाओं, देवी महात्म्य, विष्णु-भक्ति और लोकधर्म का समन्वय मिलता है।
स्कंद पुराण में वर्णित मुख्य कथाएँ
स्कंद पुराण में वर्णित मुख्य कथाएँ
1. स्कंद का जन्म
तारकासुर के अत्याचार से देवता त्रस्त थे। ब्रह्मा के वरदान से वह केवल शिव-पुत्र से ही मारा जा सकता था। शिव के तप से उत्पन्न तेज अग्नि बना, जिसे अग्नि और गंगा ने धारण किया। छह कृतिकाओं ने उसका पालन किया—इसलिए स्कंद षडानन कहलाए।
यह कथा केवल युद्ध की नहीं, बल्कि तप, त्याग और सामूहिक उत्तरदायित्व की कथा है।
2. तारकासुर वध
स्कंद का युद्ध बाह्य नहीं, आंतरिक भी है—अहंकार, अज्ञान और अधर्म के विरुद्ध।
3. शिव-भक्ति का महात्म्य
स्कंद पुराण में शिव को केवल संहारक नहीं, बल्कि करुणा और ज्ञान का स्रोत बताया गया है।
स्कंद पुराण में मंत्र और उपासना, स्कंद पुराण में मंत्रों की संख्या सीमित है, परंतु नाम-स्मरण और महामंत्र भाव अत्यंत प्रबल है।
स्कंद पुराण में मंत्र और उपासना, स्कंद पुराण में मंत्रों की संख्या सीमित है, परंतु नाम-स्मरण और महामंत्र भाव अत्यंत प्रबल है।
प्रमुख भाव-मंत्र:
ॐ नमः शिवाय
स्कंद नाम स्मरण, काशी में शिव नाम का जप। पुराण कहता है: मंत्र अक्षर में नहीं, भाव में सिद्ध होता है।
ॐ नमः शिवाय
स्कंद नाम स्मरण, काशी में शिव नाम का जप। पुराण कहता है: मंत्र अक्षर में नहीं, भाव में सिद्ध होता है।
तीर्थ महात्म्य
स्कंद पुराण को तीर्थ-पुराण भी कहा जाता है। इसमें काशी, उज्जैन, सोमनाथ, केदार, बद्रीनाथ, गया, प्रयाग, नर्मदा, गोदावरी आदि का विस्तार से वर्णन है।
काशी खंड में कहा गया है कि: काशी में मृत्यु भी मोक्ष का द्वार है।
दर्शन और तत्त्वज्ञान
स्कंद पुराण अद्वैत, भक्ति और कर्म, तीनों का समन्वय करता है।
काशी खंड में कहा गया है कि: काशी में मृत्यु भी मोक्ष का द्वार है।
दर्शन और तत्त्वज्ञान
स्कंद पुराण अद्वैत, भक्ति और कर्म, तीनों का समन्वय करता है।
मुख्य तत्त्व: आत्मा नित्य है, शिव ही ब्रह्म हैं, भक्ति ज्ञान का मार्ग है, कर्म बिना आसक्ति के हो।
स्त्री-तत्त्व और शक्ति
स्कंद पुराण में पार्वती, दुर्गा, काली, उमा के रूपों का विशेष महत्त्व है। शक्ति के बिना शिव भी निष्क्रिय हैं, यह तत्त्व बार-बार दोहराया गया है।
स्कंद पुराण का सामाजिक दृष्टिकोण
यह पुराण केवल मोक्ष नहीं, धर्मपूर्ण समाज की कल्पना करता है। इसमें:
राजा का धर्म, गृहस्थ का कर्तव्य, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र सभी का कर्तव्य, स्त्रियों का सम्मान
सबका समावेश है।
सबका समावेश है।
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स्कंद पुराण : स्वरूप, रचना, मंत्र, काल skand puran
खंड 1 : माहेश्वर खंड (विस्तृत विवेचन)
माहेश्वर खंड स्कंद पुराण का हृदय माना जाता है। यहाँ शिव को केवल देवता नहीं, बल्कि परम तत्त्व के रूप में स्थापित किया गया है। यह खंड स्पष्ट करता है कि सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और लय, तीनों शिव से ही संचालित हैं।
माहेश्वर खंड स्कंद पुराण का हृदय माना जाता है। यहाँ शिव को केवल देवता नहीं, बल्कि परम तत्त्व के रूप में स्थापित किया गया है। यह खंड स्पष्ट करता है कि सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और लय, तीनों शिव से ही संचालित हैं।
शिव यहाँ कैलास के योगी नहीं, बल्कि लोक-कल्याण के लिए मौन तोड़ने वाले गुरु हैं। पार्वती के प्रश्नों के उत्तर में शिव धर्म, वैराग्य, गृहस्थ जीवन और तप सबका संतुलन समझाते हैं।
यहाँ एक मूल सिद्धांत उभरता है: जो शिव को केवल त्यागी समझता है, वह अधूरा जानता है; शिव तो गृहस्थ और योगी दोनों हैं।
यहाँ एक मूल सिद्धांत उभरता है: जो शिव को केवल त्यागी समझता है, वह अधूरा जानता है; शिव तो गृहस्थ और योगी दोनों हैं।
खंड 2 : वैष्णव खंड (शिव–विष्णु समन्वय)
स्कंद पुराण का यह खंड उन भ्रांतियों को तोड़ता है जिनमें शिव और विष्णु को परस्पर विरोधी माना जाता है। यहाँ स्पष्ट कहा गया है कि:
विष्णु पालन हैं, शिव प्रलय नहीं—परिवर्तन हैं। इस खंड में नारायण की महिमा, अवतार कथाएँ और भक्ति का महत्व बताया गया है, पर हर स्थान पर यह संकेत मिलता है कि विष्णु और शिव एक ही ब्रह्म के दो रूप हैं।
स्कंद पुराण का यह खंड उन भ्रांतियों को तोड़ता है जिनमें शिव और विष्णु को परस्पर विरोधी माना जाता है। यहाँ स्पष्ट कहा गया है कि:
विष्णु पालन हैं, शिव प्रलय नहीं—परिवर्तन हैं। इस खंड में नारायण की महिमा, अवतार कथाएँ और भक्ति का महत्व बताया गया है, पर हर स्थान पर यह संकेत मिलता है कि विष्णु और शिव एक ही ब्रह्म के दो रूप हैं।
खंड 3 : ब्राह्म खंड (सृष्टि और कर्म सिद्धांत)
ब्राह्म खंड में सृष्टि-रचना, मनु परंपरा, युग व्यवस्था और कर्मफल सिद्धांत का विस्तार मिलता है। यहाँ बताया गया है कि कोई भी कर्म छोटा या बड़ा नहीं—भाव के अनुसार फल देता है।
जैसा भाव, वैसा कर्म; जैसा कर्म, वैसा लोक।
जैसा भाव, वैसा कर्म; जैसा कर्म, वैसा लोक।
खंड 4 : काशी खंड (मोक्ष का रहस्य)
काशी खंड स्कंद पुराण का सर्वाधिक प्रसिद्ध और गूढ़ भाग है। यहाँ काशी को पृथ्वी नहीं, अविमुक्त क्षेत्र कहा गया है, जहाँ शिव स्वयं वास करते हैं।
यहाँ कहा गया है कि: काशी में देह छूटे तो बंधन नहीं, केवल द्वार खुलता है।
यहाँ कहा गया है कि: काशी में देह छूटे तो बंधन नहीं, केवल द्वार खुलता है।
इस खंड में मृत्यु, आत्मा, तारक मंत्र और मोक्ष का रहस्य अत्यंत भावपूर्ण शैली में वर्णित है।
खंड 5 : अवंती खंड (उज्जैन और महाकाल)
अवंती नगरी में महाकाल का स्वरूप समय से परे है। यह खंड सिखाता है कि काल स्वयं शिव के अधीन है। यहाँ भस्म, वैराग्य और समय-बोध का गहन दर्शन मिलता है।
अवंती नगरी में महाकाल का स्वरूप समय से परे है। यह खंड सिखाता है कि काल स्वयं शिव के अधीन है। यहाँ भस्म, वैराग्य और समय-बोध का गहन दर्शन मिलता है।
खंड 6 : नागर और प्रभास खंड (तीर्थ और समाज)
इन खंडों में प्रभास (सोमनाथ), द्वारका, गिरनार और अन्य तीर्थों का वर्णन है। तीर्थ केवल स्थान नहीं, बल्कि संस्कार परिवर्तन के केंद्र बताए गए हैं।
स्कंद पुराण में स्कंद तत्त्व (कार्तिकेय दर्शन)
स्कंद केवल युद्धदेव नहीं, बल्कि धर्म-सेनापति हैं। उनका वाहन मयूर अहंकार का दमन दर्शाता है। उनका शस्त्र ज्ञान है, युद्ध अंतिम विकल्प।
स्कंद पुराण में नारी तत्त्व का विस्तार
यह पुराण स्त्री को अबला नहीं, शक्ति-स्रोत मानता है। पार्वती के बिना शिव भी निष्क्रिय हैं—यह वाक्य यहाँ बार-बार प्रतिध्वनित होता है।
स्कंद पुराण और गृहस्थ धर्म
यह ग्रंथ संन्यास का महिमामंडन तो करता है, पर गृहस्थ को ही समाज की धुरी बताता है। गृहस्थ ही यज्ञ, दान और सेवा का केंद्र है।
स्कंद पुराण और भक्ति मार्ग
भक्ति यहाँ भय से नहीं, प्रेम से उत्पन्न होती है। शिव को पाने के लिए कठिन तप नहीं, सच्चा भाव पर्याप्त है।
स्कंद पुराण का आधुनिक संदर्भ आज के युग में स्कंद पुराण हमें संतुलन सिखाता है, आध्यात्म और संसार, विज्ञान और श्रद्धा, अधिकार और कर्तव्य के बीच।
स्कंद पुराण का आधुनिक संदर्भ आज के युग में स्कंद पुराण हमें संतुलन सिखाता है, आध्यात्म और संसार, विज्ञान और श्रद्धा, अधिकार और कर्तव्य के बीच।
महत्त्व और उपसंहार (विस्तृत)
स्कंद पुराण केवल पढ़ने का ग्रंथ नहीं यह जीने का विधान है। यह बताता है कि धर्म कोई बोझ नहीं, बल्कि जीवन को सुंदर बनाने की कला है।
जो इसे समझ लेता है, वह शिव को बाहर नहीं खोजता अपने भीतर अनुभव करता है।
जो इसे समझ लेता है, वह शिव को बाहर नहीं खोजता अपने भीतर अनुभव करता है।
स्कंद पुराण : स्वरूप, रचना, मंत्र, काल skand puran
स्कंद जन्म कथा : ब्रह्मांडीय तप से उत्पन्न चेतना
स्कंद पुराण के अनुसार, स्कंद का जन्म कोई साधारण जन्म नहीं है। यह कथा बताती है कि जब अधर्म अपने चरम पर पहुँच जाता है, तब ईश्वर स्वयं नई चेतना को जन्म देता है। तारकासुर केवल एक असुर नहीं था, वह तप से उत्पन्न अहंकार का प्रतीक था।
ब्रह्मा से वर पाकर वह यह मान बैठा कि वह अजेय है, और यही भ्रम उसका विनाश बना। देवताओं की व्यथा सुनकर शिव मौन में चले गए। उनका मौन ही तप था।
उस तप से जो तेज उत्पन्न हुआ, वह इतना प्रचंड था कि कोई भी उसे धारण न कर सका। अग्नि भी जलने लगी, गंगा भी डगमगा गई। तब छह कृतिकाओं ने उस तेज को स्वीकार किया। इस प्रकार स्कंद षडानन हुए, छह मुख, पर एक ही चेतना।
यह कथा सिखाती है कि जब समाज सामूहिक रूप से उत्तरदायित्व उठाता है, तभी धर्म की रक्षा होती है।
तारकासुर वध : बाह्य युद्ध नहीं, आंतरिक विजय
स्कंद और तारकासुर का युद्ध केवल अस्त्र-शस्त्र का नहीं था। यह अज्ञान बनाम ज्ञान का संग्राम था। स्कंद ने तारकासुर का वध कर यह सिद्ध किया कि अहंकार चाहे तप से उत्पन्न हो या सत्ता से—अंततः उसका नाश निश्चित है।
पुराण कहता है कि स्कंद का शस्त्र भाला नहीं, विवेक था। युद्ध अंतिम उपाय था; उससे पहले उपदेश दिया गया, चेतावनी दी गई।
पुराण कहता है कि स्कंद का शस्त्र भाला नहीं, विवेक था। युद्ध अंतिम उपाय था; उससे पहले उपदेश दिया गया, चेतावनी दी गई।
काशी खंड का गूढ़ रहस्य (विस्तार)
काशी को स्कंद पुराण में पृथ्वी का नगर नहीं माना गया। वह चेतना का केंद्र है, जहाँ शिव स्वयं तारक मंत्र का उपदेश देते हैं। कहा गया है कि काशी में मरने वाला जीव पुनर्जन्म से मुक्त हो जाता है, क्योंकि वहाँ मृत्यु भी गुरु बन जाती है।
जहाँ शिव कान में नाम कह दें, वहाँ यम भी शिष्य हो जाता है।
यह खंड मृत्यु के भय को समाप्त करता है और जीवन को पवित्र बनाता है।
जहाँ शिव कान में नाम कह दें, वहाँ यम भी शिष्य हो जाता है।
यह खंड मृत्यु के भय को समाप्त करता है और जीवन को पवित्र बनाता है।
मंत्र, जप और साधना का रहस्य
स्कंद पुराण मंत्रों की संख्या नहीं बढ़ाता, वह भाव की शुद्धता पर बल देता है। 'ॐ नमः शिवाय' को यहाँ पंचाक्षरी नहीं, पंचतत्त्वों की शुद्धि का मार्ग बताया गया है।
मंत्र तभी फल देता है जब जप करने वाला अपने भीतर के विकारों को त्यागे।
तीर्थ महात्म्य : स्थान नहीं, संस्कार
स्कंद पुराण के अनुसार तीर्थ वह स्थान है जहाँ जाकर मन का मल धुल जाए। नर्मदा की धारा, प्रयाग का संगम, गया का पिंडदान सब आत्मा के संस्कारों को शुद्ध करने के साधन हैं।
राजधर्म और सामाजिक व्यवस्था
राजा को यहाँ केवल शासक नहीं, धर्म का सेवक बताया गया है। जो राजा प्रजा को पुत्रवत् नहीं देखता, उसका राज्य अधिक समय नहीं टिकता।
स्कंद पुराण में मोक्ष की अवधारणा
स्कंद पुराण में मोक्ष की अवधारणा
मोक्ष यहाँ कहीं भाग जाने का नाम नहीं। यह बंधनों के बीच रहते हुए मुक्त होना है। गृहस्थ होकर भी जो आसक्ति छोड़ दे, वही मुक्त है।
उपसंहार
स्कंद पुराण कोई साधारण ग्रंथ नहीं यह धर्म की जीवंत नदी है। इसमें कथा है, उपदेश है, तीर्थ है, मंत्र है, दर्शन है, और सबसे बढ़कर मानव को शिवत्व की ओर ले जाने की प्रेरणा है।
स्कंद पुराण कोई साधारण ग्रंथ नहीं यह धर्म की जीवंत नदी है। इसमें कथा है, उपदेश है, तीर्थ है, मंत्र है, दर्शन है, और सबसे बढ़कर मानव को शिवत्व की ओर ले जाने की प्रेरणा है।
जो इसे केवल पढ़ता है, वह जानकारी पाता है; जो इसे समझता है, वह मार्ग पाता है; और जो इसे जीता है, वह स्वयं स्कंद-तत्त्व को प्राप्त करता है। (स्कंद पुराण : स्वरूप, रचना, मंत्र, काल skand puran)
स्कंद पुराण एक ग्रंथ नहीं एक दृष्टि है। यह मनुष्य को बताता है कि धर्म जीवन से अलग नहीं, जीवन का सौंदर्य है। शिव कोई दूर बैठे देव नहीं, हर उस हृदय में हैं जहाँ करुणा, सत्य और विवेक निवास करता है।


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