अथर्ववेद (Atharva Veda) का बहुत ही विस्तृत, सरल, शोधपूर्ण विवरण
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✔ इसमें किस प्रकार के मंत्र हैं
✔ किस उद्देश्य से इसका प्रयोग होता है
✔ जीवन, स्वास्थ्य, राज्य, वैदिक विज्ञान, चिकित्सा, तंत्र, शांति, समृद्धि, ब्रह्मविद्या—इन सब का विशद वर्णन
✔ प्रमुख मंत्रों के उदाहरण (संस्कृत + सरल हिंदी अर्थ)
अथर्ववेद वेदों का चतुर्थ और अंतिम वेद है। इसे ब्राह्मणों का गृह-जीवन संबंधी वेद, रक्षा-शांति का वेद, तथा औषध-विज्ञान का आदिग्रंथ भी कहा जाता है।
ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद जहाँ मुख्यतः यज्ञ, देवतत्त्व, सामगान और आह्वान पर आधारित हैं, वहीं अथर्ववेद मनुष्य के वास्तविक जीवन की समस्याओं, स्वास्थ्य, परिवार, समृद्धि, सुरक्षा, चिकित्सा, शासन और आध्यात्मिक समाधि सभी को विस्तार से बताता है।
थर्ववेद के रचनाकार:- इसमें अथर्वा ऋषि-
कश्यप
भूमि
ऋभु
दधीचि आदि अनेक ऋषियों के मंत्र संकलित हैं।
अथर्ववेद को वेदों का अनुभव वेद भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें जीवन का हर पहलू विस्तार से मिलता है।
इसमें निम्नलिखित विषय पूरे विस्तार में हैं
4. राजनीति और राज्यशास्त्र:- अथर्ववेद में राजा कैसा हो, न्याय कैसा हो, शत्रु से कैसे रक्षा हो, प्रजा की भलाई के, सिद्धांत, राष्ट्र की रक्षा, सेना का प्रबंधन, जैसे विषयों पर गहरा प्रकाश है।
1. स्वास्थ्य और रोग-निवारण:- अथर्ववेद मानता है कि “रोग पहले मन में पैदा होता है, फिर शरीर में।” इसलिए इसमें मन व शरीर दोनों के उपचार हैं।
2. मानसिक शांति:- तनाव, भय, काल-दोष, दुःस्वप्न, उद्वेग आदि के लिए बहुत से शांति मंत्र हैं।
3. घर-परिवार और संबंध:- विवाह का स्थायित्व, दाम्पत्य प्रेम, संतान प्राप्ति, गृह में समृद्धि, अशांति हटाने के उपाय।
4. सुरक्षा और रक्षा मंत्र:- विष से रक्षा, सर्प-दंश निवारण, रात्रि भय से रक्षा, नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा
5. शिक्षा, बुद्धि और विद्या:- विद्या, वाक्-शक्ति, स्मरणशक्ति, अध्ययन में वृद्धि करने वाले मंत्र।
6. राष्ट्र, सेना और शासन:- राजा व सेनापति को धर्मसंगत तरीके से राज्य संचालन का मार्गदर्शन।
अथर्ववेद (Atharva Veda) का बहुत ही विस्तृत, सरल, शोधपूर्ण विवरण
अब मैं आपको अथर्ववेद के कुछ महत्वपूर्ण मंत्र दे रहा हूँ, जिनका उपयोग आज भी जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है।
1. शांति मंत्र (अथर्ववेद 6.36)
शं योरभि स्त्रवन्तु नः॥
अर्थ:- हे देवियों! आप (जल) हमारे लिए कल्याणकारी बनो, हमारे जीवन में सुख, शांति और पवित्रता का संचार करो।
(यह प्रसिद्ध बुखार-निवारण मंत्र है।)
संस्कृत मंत्र:
सर्वज्वरान् अपामार्ग त्वं नय॥
अर्थ:- विष, तक्षक नामक दुष्ट ज्वर से निकलकर दूर हो जा। हे अपामार्ग (औषधि), इस ज्वर को नष्ट कर दे।
3. रक्षा मंत्र (अथर्ववेद 2.36)
संस्कृत:
अग्ने पायस्व नः सदा॥
4. गृह-शांति मंत्र (अथर्ववेद 3.12)
संस्कृत:
अग्ने गृहपतये नमः॥
अर्थ:- हम अपने घर की प्रतिदिन रक्षा करते हैं। हे अग्नि, तुम गृहपति हो—तुम हमारे घर को सुरक्षित और पवित्र रखो।
5. संतान प्रार्थना मंत्र (अथर्ववेद 6.11)
पुत्रः पितरं पुष्यतु॥
समञ्जन्तु विश्वेदेवाः।
समापो हृदयानि नः॥
अर्थ:- सभी देवता हमारे हृदयों को आपस में जोड़ दें। हमारे मन शांति और प्रेम से भर जाएँ।
हृदि स्थापय मैत्रिम्॥
मेधामे देवः सविता दधातु।
मेधाम् देवी सरस्वती॥
त्रायस्व नो मृत्युर्भयं।
नय जीवने पुनः पुनः॥
संस्कृत अंश:- माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः।
अर्थ:- पृथ्वी मेरी माता है और मैं उसका पुत्र हूँ।
अध्याय 5 : अथर्ववेद के 20 कांडों का सार (विस्तृत)
कांड 1–7:- स्वास्थ्य, चिकित्सा, रक्षा, शांति इनमें ज्वर, विष, सर्प-दंश, त्वचा रोग, मानसिक रोग, नकारात्मक शक्तियों से रक्षा, रात्रि भय, प्रसव-सम्बंधी जड़ी-बूटियाँ बताई गई हैं।
विशेष:- अपामार्ग (अछूत/खरपतवार) का महत्व, कुष्ठ रोग उपचार, वात-पित्त-कफ का वैदिक वर्णन, जड़ी-बूटी आधारित चिकित्सा.
कांड 8–12 : तंत्र, योग, जीवन, मृत्यु, प्राण
संपूर्ण दार्शनिक वर्णन है।
कांड 13–18 गृहस्थ जीवन, विवाह, संतान, घर-परिवार,
इन्हें गृहस्थाश्रम की संहिता कहा जाता है विवाह मंडल, दाम्पत्य शांति प्रेम, आकर्षण, सौहार्द, संतान प्राप्ति मंत्र, संतानों की रक्षा, पशुपालन
कृषि:- घर में समृद्धि, खेत, वर्षा, धूप का विज्ञान
कांड 19–20 आध्यात्मिक ज्ञान और ब्रह्मविद्या:- इनमें ब्रह्म, आत्मा, योग, प्राण, उपनिषद का प्रारंभिक दर्शन, ज्ञान, ध्यान, समाधि, का उच्च कोटि का ज्ञान है।
अध्याय 6 अथर्ववेद के उपयोग आज के समय में
✔ मानसिक शांति:- अवसाद, चिंता, भय, शांति मंत्र
✔ घर की सुख-समृद्धि:- गृह-शांति, संबंधों में प्रेम
✔ पर्यावरण और पृथ्वी:- भूमि सूक्त, जल, वायु, वनस्पति का महत्व
✔ शिक्षा:- मेधा-सूक्त, बुद्धि-वृद्धि मंत्र
✔ प्रशासन, राजनीति:- राजा के गुण, न्याय व्यवस्था, राष्ट्र रक्षा

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