अथर्ववेद (Atharva Veda) का बहुत ही विस्तृत, सरल, शोधपूर्ण विवरण

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अथर्ववेद (Atharva Veda) का बहुत ही विस्तृत, सरल, शोधपूर्ण विवरण

अथर्ववेद (Atharva Veda) का बहुत ही विस्तृत, सरल, शोधपूर्ण विवरण
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✔ अथर्ववेद क्या है
✔ इसमें किस प्रकार के मंत्र हैं
✔ किस उद्देश्य से इसका प्रयोग होता है
✔ जीवन, स्वास्थ्य, राज्य, वैदिक विज्ञान, चिकित्सा, तंत्र, शांति, समृद्धि, ब्रह्मविद्या—इन सब का विशद वर्णन
✔ प्रमुख मंत्रों के उदाहरण (संस्कृत + सरल हिंदी अर्थ)
अध्याय 1 : अथर्ववेद का परिचय

अथर्ववेद वेदों का चतुर्थ और अंतिम वेद है। इसे ब्राह्मणों का गृह-जीवन संबंधी वेद, रक्षा-शांति का वेद, तथा औषध-विज्ञान का आदिग्रंथ भी कहा जाता है।

ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद जहाँ मुख्यतः यज्ञ, देवतत्त्व, सामगान और आह्वान पर आधारित हैं, वहीं अथर्ववेद मनुष्य के वास्तविक जीवन की समस्याओं, स्वास्थ्य, परिवार, समृद्धि, सुरक्षा, चिकित्सा, शासन और आध्यात्मिक समाधि सभी को विस्तार से बताता है।

थर्ववेद के रचनाकार:- इसमें अथर्वा ऋषि-

अंगिरा ऋषि
कश्यप
भूमि
ऋभु
दधीचि 
आदि अनेक ऋषियों के मंत्र संकलित हैं।

कुल मंत्र और संरचना:- अथर्ववेद में, 20 कांड, 111 उपखंड/प्रपाठक, 730 सूक्त, 6,000 मंत्र शामिल हैं।

भाषा वैदिक संस्कृत:- मुख्य देवता पृथ्वी, अग्नि, मरुत, सोम, उषा, वरुण, इंद्र, रुद्र, काल, मृत्यु, प्रजापति, वायु, औषधियाँ, जल,

अथर्ववेद को वेदों का अनुभव वेद भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें जीवन का हर पहलू विस्तार से मिलता है।

अध्याय 2 :- अथर्ववेद में क्या है? (पूर्ण सार) अथर्ववेद को यदि एक वाक्य में समझना हो तो यह *“जीवन का वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक सुरक्षा कवच” है।

इसमें निम्नलिखित विषय पूरे विस्तार में हैं

1. औषध और चिकित्सा विज्ञान (Ayurveda का मूल)
यहाँ:- जड़ी-बूटियों का गुण, रोगों के कारण, असुरक्षा, भय, मानसिक रोग, बुखार (तक्षक ज्वर), विष उपचार, त्वचा रोग, हड्डी टूटने का ज्ञान, प्रसव संबंधी ज्ञान, यज्ञों से रोग-निवारण का अद्भुत वर्णन मिलता है।

2. तंत्र और प्रायोगिक विज्ञान:- अथर्ववेद को कभी-कभी “तंत्र वेद” भी कहा जाता है। इसमें नकारात्मक शक्तियों से रक्षा मंत्रों द्वारा सुरक्षा, शत्रु-विनाश नहीं, बल्कि शत्रु-शमन, रक्षात्मक उपाय, आत्मिक रक्षा, भय से मुक्ति, घर-शांति जैसे विषय हैं।

3. गृहस्थ जीवन:- यह एकमात्र वेद है जिसमें विवाह, संतान, परिवार के संबंध, सुख-शांति, धन प्राप्ति, कृषि, पशुपालन, गृह द्वारा लगने वाले संकट का विस्तृत ज्ञान है।

4. राजनीति और राज्यशास्त्र:- अथर्ववेद में राजा कैसा हो, न्याय कैसा हो, शत्रु से कैसे रक्षा हो, प्रजा की भलाई के, सिद्धांत, राष्ट्र की रक्षा, सेना का प्रबंधन, जैसे विषयों पर गहरा प्रकाश है।

5. आध्यात्मिक ज्ञान:- यहाँ, आत्मा, प्राण, मृत्यु, पुनर्जन्म, ब्रह्म, ध्यान, योग का आधारभूत दर्शन मिलता है।

अध्याय 3 : अथर्ववेद किसके लिए उपयोगी है

1. स्वास्थ्य और रोग-निवारण:- अथर्ववेद मानता है कि “रोग पहले मन में पैदा होता है, फिर शरीर में।” इसलिए इसमें मन व शरीर दोनों के उपचार हैं।

2. मानसिक शांति:- तनाव, भय, काल-दोष, दुःस्वप्न, उद्वेग आदि के लिए बहुत से शांति मंत्र हैं।

3. घर-परिवार और संबंध:- विवाह का स्थायित्व, दाम्पत्य प्रेम, संतान प्राप्ति, गृह में समृद्धि, अशांति हटाने के उपाय।

4. सुरक्षा और रक्षा मंत्र:- विष से रक्षा, सर्प-दंश निवारण, रात्रि भय से रक्षा, नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा

5. शिक्षा, बुद्धि और विद्या:- विद्या, वाक्-शक्ति, स्मरणशक्ति, अध्ययन में वृद्धि करने वाले मंत्र।

6. राष्ट्र, सेना और शासन:- राजा व सेनापति को धर्मसंगत तरीके से राज्य संचालन का मार्गदर्शन।

अध्याय 4 : अथर्ववेद के प्रमुख मंत्र (संस्कृत + अर्थ)

अथर्ववेद (Atharva Veda) का बहुत ही विस्तृत, सरल, शोधपूर्ण विवरण

अब मैं आपको अथर्ववेद के कुछ महत्वपूर्ण मंत्र दे रहा हूँ, जिनका उपयोग आज भी जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है।

1. शांति मंत्र (अथर्ववेद 6.36)

संस्कृत मंत्र:

ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शं योरभि स्त्रवन्तु नः॥

अर्थ:- हे देवियों! आप (जल) हमारे लिए कल्याणकारी बनो, हमारे जीवन में सुख, शांति और पवित्रता का संचार करो।

2. तक्षक ज्वर नाशक मंत्र (अथर्ववेद 5.22)
(यह प्रसिद्ध बुखार-निवारण मंत्र है।)

संस्कृत मंत्र:

तक्षकादप सरप विषं तूर्णं निर्यातु।
सर्वज्वरान् अपामार्ग त्वं नय॥

अर्थ:- विष, तक्षक नामक दुष्ट ज्वर से निकलकर दूर हो जा। हे अपामार्ग (औषधि), इस ज्वर को नष्ट कर दे।

3. रक्षा मंत्र (अथर्ववेद 2.36)

संस्कृत:

त्रायन्ताम् नः पथो रथ्या अपदः सर्वतोभया।
अग्ने पायस्व नः सदा॥

अर्थ:- हमारी सभी दिशाओं से रक्षा हो। हे अग्नि! तू हमारी सदैव रक्षा कर।

4. गृह-शांति मंत्र (अथर्ववेद 3.12)

संस्कृत:

गृहाणां धिष्ण्यं वयं रक्षामहे दिनं प्रति।
अग्ने गृहपतये नमः॥

अर्थ:- हम अपने घर की प्रतिदिन रक्षा करते हैं। हे अग्नि, तुम गृहपति हो—तुम हमारे घर को सुरक्षित और पवित्र रखो।

5. संतान प्रार्थना मंत्र (अथर्ववेद 6.11)

संस्कृत:

बीजं वृक्ष इव रुहतु।
पुत्रः पितरं पुष्यतु॥

अर्थ:- बीज जैसे वृक्ष बनकर बढ़ता है, वैसे ही संतान भी पिता का गौरव बढ़ाए।
6. विवाह सौभाग्य मंत्र (अथर्ववेद 14.1-14)
संस्कृत:
समञ्जन्तु विश्वेदेवाः।
समापो हृदयानि नः॥

अर्थ:- सभी देवता हमारे हृदयों को आपस में जोड़ दें। हमारे मन शांति और प्रेम से भर जाएँ।


7. शत्रु-शमन मंत्र (अथर्ववेद 7.70)

(नोट: यह विनाश नहीं, शमन—अर्थात् शांति स्थापित करने हेतु है।)

संस्कृत:

मित्रं कुरु मनः शत्रोः।
हृदि स्थापय मैत्रिम्॥

अर्थ:- दुश्मन के मन में भी मैत्री का भाव उत्पन्न हो। हमारा शत्रु भी हमारे प्रति शुभभाव रखे।

8. विद्या और बुद्धि वृद्धि मंत्र (अथर्ववेद 19.9)

संस्कृत:
मेधामे देवः सविता दधातु।
मेधाम् देवी सरस्वती॥

अर्थ:- सविता देव मुझे मेधा (बुद्धि) प्रदान करें। सरस्वती मुझे ज्ञान और वाणी की शक्ति दें।

9. मृत्यु और भय से रक्षा मंत्र (अथर्ववेद 8.6)

संस्कृत
त्रायस्व नो मृत्युर्भयं।
नय जीवने पुनः पुनः॥

अर्थ:- हे मृत्यु-विजयी देव! हमें मृत्यु-भय से बचाओ और बार-बार जीवन शक्ति प्रदान करो।

10. पृथ्वी स्तुति (अथर्ववेद – भूमि सूक्त 12वाँ कांड):- (यह पूरी दुनिया में प्रसिद्ध सूक्त है—Earth Anthem जैसा।)

संस्कृत अंश:- माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः।

अर्थ:- पृथ्वी मेरी माता है और मैं उसका पुत्र हूँ।

अध्याय 5 : अथर्ववेद के 20 कांडों का सार (विस्तृत)

अब मैं आपको सभी 20 कांडों का गहन और विस्तृत सार दे रहा हूँ:

कांड 1–7:- स्वास्थ्य, चिकित्सा, रक्षा, शांति इनमें ज्वर, विष, सर्प-दंश, त्वचा रोग, मानसिक रोग, नकारात्मक शक्तियों से रक्षा, रात्रि भय, प्रसव-सम्बंधी जड़ी-बूटियाँ बताई गई हैं।

विशेष:- अपामार्ग (अछूत/खरपतवार) का महत्व, कुष्ठ रोग उपचार, वात-पित्त-कफ का वैदिक वर्णन, जड़ी-बूटी आधारित चिकित्सा.

कांड 8–12 : तंत्र, योग, जीवन, मृत्यु, प्राण

यहाँ प्राणों का विज्ञान, मृत्यु का स्वरूप, पुनर्जन्म, कर्म, ध्यान, मनोवैज्ञानिक उपचार, नकारात्मक ऊर्जा का निवारण
संपूर्ण दार्शनिक वर्णन है।

12वाँ कांड विशेष:- भूमि सूक्त पृथ्वी की संरचना, पर्यावरण, ऋतुएँ, जलवायु और कृषि का अद्भुत ज्ञान मिलता है।
कांड 13–18 गृहस्थ जीवन, विवाह, संतान, घर-परिवार,

इन्हें गृहस्थाश्रम की संहिता कहा जाता है विवाह मंडल, दाम्पत्य शांति प्रेम, आकर्षण, सौहार्द, संतान प्राप्ति मंत्र, संतानों की रक्षा, पशुपालन

कृषि:- घर में समृद्धि, खेत, वर्षा, धूप का विज्ञान

कांड 19–20 आध्यात्मिक ज्ञान और ब्रह्मविद्या:- इनमें ब्रह्म, आत्मा, योग, प्राण, उपनिषद का प्रारंभिक दर्शन, ज्ञान, ध्यान, समाधि, का उच्च कोटि का ज्ञान है।

अध्याय 6 अथर्ववेद के उपयोग आज के समय में

✔ स्वास्थ्य के लिए:- ज्वर, तनाव, रोग, आयुर्वेद के मूल सिद्धांत, औषधियों का उपयोग
✔ मानसिक शांति:- अवसाद, चिंता, भय, शांति मंत्र
✔ घर की सुख-समृद्धि:- गृह-शांति, संबंधों में प्रेम
✔ पर्यावरण और पृथ्वी:- भूमि सूक्त, जल, वायु, वनस्पति का महत्व
✔ शिक्षा:- मेधा-सूक्त, बुद्धि-वृद्धि मंत्र
✔ प्रशासन, राजनीति:- राजा के गुण, न्याय व्यवस्था, राष्ट्र रक्षा

अध्याय 7:- अथर्ववेद का महत्व 
निष्कर्ष:- अथर्ववेद केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि चिकित्सा-विज्ञान, पर्यावरण-विज्ञान, मनोविज्ञान, योग-ध्यान, गृह-परिवार, राजनीति, जीवन-शिक्षा, सुरक्षा-शास्त्र, सभी का संयुक्त विश्वकोश है।

यह वेद कहता है “जीवन तब तक पूर्ण नहीं होता जब तक व्यक्ति मन, शरीर, परिवार, समाज और राष्ट्र सबकी शांति को जान न ले।”

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