कूर्म पुराण : एक प्रामाणिक और विस्तृत अध्ययन kurum puran

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 कूर्म पुराण : एक प्रामाणिक और विस्तृत अध्ययन kurum puran

कूर्म पुराण : एक प्रामाणिक और विस्तृत अध्ययन kurum puran
कूर्म पुराण हिंदू धर्म के अठारह महापुराणों में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण पुराण है। इसका नाम भगवान विष्णु के (कूर्म अवतार) पर आधारित है। यह पुराण केवल कथा-संग्रह नहीं है, बल्कि इसमें सृष्टि-विज्ञान, धर्म, कर्म, भक्ति, योग, तप, दान, व्रत, तीर्थ, देवपूजा और शैव-वैष्णव समन्वय का अत्यंत गूढ़ और संतुलित विवेचन मिलता है।
वामन पुराणीय परंपरा के अनुसार, कूर्म पुराण को वैष्णव आधार पर रचित माना गया है, परंतु इसमें शिवतत्त्व का भी गहन और आदरपूर्ण वर्णन है। यही कारण है कि इसे (समन्वय पुराण) भी कहा जाता है।
कूर्म पुराण क्या है?
कूर्म पुराण एक संस्कृत महापुराण है, जिसमें भगवान विष्णु स्वयं कूर्म (कछुआ) रूप में ऋषियों को उपदेश देते हैं। 'समुद्र मंथन' के समय जब मंदराचल पर्वत डगमगाने लगा, तब विष्णु ने कूर्म अवतार लेकर उसे अपनी पीठ पर धारण किया। 
उसी स्थिर, धैर्य और संतुलन के प्रतीक स्वरूप से यह पुराण जुड़ा है। यह पुराण बताता है कि जैसे कूर्म अवतार ने सृष्टि को संतुलन दिया, वैसे ही धर्म, ज्ञान और भक्ति जीवन को स्थिरता प्रदान करते हैं।
कूर्म पुराण की रचना किसने की?
पारंपरिक मान्यता
भारतीय पुराण परंपरा के अनुसार, "महर्षि वेदव्यास" कूर्म पुराण के कर्ता माने जाते हैं। वेदव्यास ने वेदों का संकलन, महाभारत की रचना तथा अठारह महापुराणों का विन्यास किया।
वामन पुराणीय दृष्टि
वामन पुराण में स्पष्ट संकेत मिलता है कि कूर्म पुराण वैष्णव सिद्धांत पर आधारित है, किंतु इसमें शिव को सर्वोच्च तपस्वी और महायोगी के रूप में स्वीकार किया गया है। इस कारण यह पुराण किसी एक संप्रदाय तक सीमित नहीं रहता।
ऐतिहासिक दृष्टि से इसकी रचना का काल लगभग ईसा की 4वीं से 6वीं शताब्दी के बीच माना जाता है, हालांकि इसमें निहित परंपराएँ इससे कहीं अधिक प्राचीन हैं।

कूर्म पुराण की संरचना

Kurma Purana artwork depicting Kurma avatar, Goddess Durga, Shiva Lingam and ancient sage teaching dharma from Hindu Purana
कूर्म पुराण मुख्यतः दो भागों में विभक्त है:
1. पूर्वभाग
2. उत्तरभाग
कुल मिलाकर इसमें लगभग 17,000 श्लोक बताए जाते हैं, हालांकि उपलब्ध ग्रंथों में श्लोक संख्या में भिन्नता मिलती है। संवाद शैली; इस पुराण का संवाद मुख्य रूप से:
भगवान कूर्म (विष्णु)
ऋषि नारद
ब्रह्मा
महर्षि भृगु
अन्य मुनियों
के बीच होता है। संवाद शैली इसे अत्यंत जीवंत और शिक्षाप्रद बनाती है। कूर्म पुराण में किसकी पूजा का वर्णन है?
1. भगवान विष्णु की पूजा
कूर्म पुराण में विष्णु को 'परब्रह्म' माना गया है। वे सृष्टि के पालनकर्ता हैं। उनकी पूजा के विषय में कहा गया है कि:
विष्णु ही यज्ञ हैं
विष्णु ही मंत्र हैं
विष्णु ही फलदाता हैं
उनके विविध रूपों – नारायण, वासुदेव, कूर्म, वराह – की पूजा का विधान मिलता है।
2. भगवान शिव की महिमा
कूर्म पुराण का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि इसमें (शिव-तत्त्व) का अत्यंत गहन विवेचन है। शिव को:
महायोगी
परम तपस्वी
ज्ञानस्वरूप
कहा गया है। इसमें पाशुपत योग का विस्तार से वर्णन मिलता है, जो शिव-उपासना का दार्शनिक मार्ग है।
3. शक्ति और देवियाँ
पार्वती
दुर्गा
लक्ष्मी
की पूजा का वर्णन भी मिलता है। देवी को शक्ति, सृजन और करुणा का स्वरूप माना गया है।
कूर्म पुराण के प्रमुख विषय
1. सृष्टि की उत्पत्ति
कूर्म पुराण में सृष्टि की रचना का वर्णन सांख्य दर्शन के आधार पर किया गया है:
प्रकृति
पुरुष
महत्तत्त्व
अहंकार
पंचमहाभूत
इन सबकी उत्पत्ति क्रमबद्ध रूप से समझाई गई है।
2. समुद्र मंथन कथा
समुद्र मंथन का वर्णन इस पुराण में अत्यंत विस्तार से मिलता है। इसमें:
कूर्म अवतार
देव-दानव संघर्ष
अमृत
लक्ष्मी प्राकट्य
सभी घटनाओं को दार्शनिक अर्थों के साथ जोड़ा गया है।
3. योग और तपस्या
कूर्म पुराण में योग को मोक्ष का साधन बताया गया है। इसमें:
यम
नियम
आसन
प्राणायाम
ध्यान
समाधि
का वर्णन मिलता है। कूर्म पुराण में वर्णित मंत्रnकूर्म पुराण में वैदिक और पौराणिक दोनों प्रकार के मंत्र मिलते हैं। प्रमुख रूप से:
1. विष्णु मंत्र
ॐ नमो नारायणाय
ॐ विष्णवे नमः
2. शिव मंत्र
ॐ नमः शिवाय
पाशुपत मंत्र (संकेतात्मक रूप में)
3. सृष्टि एवं शांति मंत्र
ॐ सर्वं खल्विदं ब्रह्म
ॐ शांति: शांति: शांति:
इन मंत्रों को ध्यान, जप और यज्ञ में उपयोगी बताया गया है।
धर्म, कर्म और मोक्ष
कूर्म पुराण में कहा गया है कि:
धर्म जीवन की नींव है
कर्म उसका स्वरूप है
भक्ति उसकी आत्मा है
ज्ञान उसका प्रकाश है
मोक्ष को केवल संन्यास से नहीं, बल्कि गृहस्थ जीवन में रहकर धर्मपूर्वक आचरण से संभव बताया गया है।
वामन पुराण से साम्यता
वामन पुराण और कूर्म पुराण दोनों में:
विष्णु की सर्वोच्चता
अवतार सिद्धांत
यज्ञ परंपरा
दान और व्रत
का समान दृष्टिकोण मिलता है। दोनों ग्रंथ धर्म को सामाजिक और आध्यात्मिक व्यवस्था मानते हैं।

कूर्म पुराण का दार्शनिक महत्व

Kurma Purana illustration showing Lord Vishnu in Kurma avatar, Samudra Manthan, Shiva Lingam, Goddess Durga and sage teaching sacred Hindu scripture
कूर्म पुराण सांख्य, योग और वेदांत के तत्वों का समन्वय प्रस्तुत करता है। यह बताता है कि सत्य तक पहुँचने के मार्ग अनेक हो सकते हैं, किंतु लक्ष्य एक ही है आत्मसाक्षात्कार।
उपसंहार
कूर्म पुराण केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन-दर्शन है। यह सिखाता है कि जैसे कूर्म अवतार स्थिरता का प्रतीक है, वैसे ही मानव जीवन में संतुलन, धैर्य और धर्म आवश्यक हैं।
वामन पुराणीय परंपरा के अनुसार, यह पुराण विष्णु-भक्ति, शिव-योग और शक्ति-उपासना का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है।                       (कूर्म पुराण : एक प्रामाणिक और विस्तृत अध्ययन kurum puran)
निष्कर्षतः कूर्म पुराण भारतीय आध्यात्मिक परंपरा का एक अमूल्य रत्न है, जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना सहस्रों वर्ष पूर्व था।

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