मत्स्य पुराण : उत्पत्ति, विषयवस्तु, मंत्र और दार्शनिक महत्व matsya

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 मत्स्य पुराण : उत्पत्ति, विषयवस्तु, मंत्र और दार्शनिक महत्व matsya

मत्स्य पुराण : उत्पत्ति, विषयवस्तु, मंत्र और दार्शनिक महत्व matsya
मत्स्य पुराण सनातन हिंदू परंपरा के अठारह महापुराणों में एक अत्यंत प्राचीन, महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक ग्रंथ है। इसका नाम भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार से जुड़ा हुआ है। 
यह पुराण केवल धार्मिक कथाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सृष्टि-विज्ञान, धर्मशास्त्र, राजधर्म, समाज व्यवस्था, वास्तु, मूर्ति-निर्माण, तीर्थ, व्रत, दान, कल्प, प्रलय और मोक्ष जैसे विषयों का गहन विवेचन मिलता है।

मत्स्य पुराण को इसलिए भी विशेष माना जाता है क्योंकि यह महापुराणों में सबसे 'व्यावहारिक और शास्त्रीय' पुराणों में से एक है। इसमें धर्म को केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और प्रशासनिक दृष्टि से भी प्रस्तुत किया गया है।
मत्स्य पुराण क्या है?
मत्स्य पुराण एक संस्कृत महापुराण है जिसमें भगवान विष्णु ने (मत्स्य (मछली) रूप धारण करके महर्षि मनु को सृष्टि के रहस्यों का उपदेश दिया। प्रलय के समय जब संपूर्ण पृथ्वी जलमग्न हो गई थी, तब मत्स्य अवतार ने वेदों की रक्षा की और मनु को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया।
यह पुराण यह सिखाता है कि जब-जब अधर्म, अज्ञान और विनाश की स्थिति उत्पन्न होती है, तब ईश्वर किसी न किसी रूप में धर्म की रक्षा करते हैं।
मत्स्य पुराण की रचना किसने की?
पारंपरिक मान्यता
भारतीय पौराणिक परंपरा के अनुसार,महर्षि वेदव्यास को मत्स्य पुराण का रचयिता माना जाता है। वेदव्यास ने वेदों का विभाजन कर अठारह महापुराणों की रचना एवं संकलन किया।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण
विद्वानों के अनुसार मत्स्य पुराण की वर्तमान संरचना का काल लगभग ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से ईसा की तीसरी शताब्दी के बीच माना जाता है। इसमें वर्णित कई सामाजिक और स्थापत्य विवरण गुप्तकालीन संस्कृति की ओर संकेत करते हैं।

मत्स्य पुराण की संरचना

मत्स्य पुराण में लगभग 14,000 श्लोक माने जाते हैं। यह कई अध्यायों में विभक्त है और संवाद शैली में रचित है।
मुख्य संवाद:,भगवान मत्स्य (विष्णु), महर्षि मनु,अन्य ऋषि-मुनि।
मत्स्य पुराण में क्या लिखा है?
1. मत्स्य अवतार की कथा
मत्स्य पुराण की आधारशिला भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की कथा है। इसमें बताया गया है कि किस प्रकार भगवान ने प्रलय से पहले मनु को चेतावनी दी, नौका निर्माण का निर्देश दिया और सप्तऋषियों, बीजों तथा जीवों की रक्षा की।
यह कथा केवल ऐतिहासिक नहीं, बल्कि प्रतीकात्मक भी हैजहाँ नौका ज्ञान का, जल अज्ञान का और मत्स्य ईश्वर की कृपा का प्रतीक है।
2. सृष्टि और प्रलय का वर्णन
मत्स्य पुराण में सृष्टि की उत्पत्ति और प्रलय का अत्यंत वैज्ञानिक और दार्शनिक विवरण मिलता है। इसमें:
महाप्रलय
नैमित्तिक प्रलय
प्राकृतिक चक्र
का वर्णन है। यह बताता है कि सृष्टि नष्ट नहीं होती, बल्कि पुनः सृजित होती है।
3. धर्म और कर्म सिद्धांत
मत्स्य पुराण में धर्म को जीवन का आधार बताया गया है। इसमें कहा गया है कि:
सत्य
अहिंसा
दया
संयम
ही वास्तविक धर्म हैं। कर्म के अनुसार फल प्राप्ति का सिद्धांत स्पष्ट रूप से प्रतिपादित किया गया है।
4. राजधर्म और शासन व्यवस्था
इस पुराण की एक विशेषता यह है कि इसमें "राजधर्म" का विस्तार से वर्णन मिलता है। राजा के कर्तव्य, कर व्यवस्था, न्याय प्रणाली और प्रजा के प्रति उत्तरदायित्व को स्पष्ट किया गया है।
5. वास्तु और मूर्ति-निर्माण शास्त्र
मत्स्य पुराण में मंदिर निर्माण, मूर्ति-निर्माण और नगर योजना का अत्यंत विस्तृत वर्णन मिलता है। इसमें बताया गया है:
देवमूर्ति के लक्षण, अनुपात, स्थापत्य नियम, इसी कारण इसे वास्तुशास्त्र का महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है।
मत्स्य पुराण में किसकी पूजा का वर्णन है?
1. भगवान विष्णु
मत्स्य पुराण में विष्णु को सर्वोच्च ईश्वर के रूप में स्वीकार किया गया है। उनके विभिन्न अवतारों (मत्स्य, कूर्म, वराह) का उल्लेख मिलता है।
2. भगवान शिव
यह पुराण शिव की भी अत्यंत श्रद्धा के साथ महिमा करता है। शिव को योग, तप और ज्ञान का प्रतीक बताया गया है।
3. देवी उपासना
दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती की पूजा का भी वर्णन मिलता है। देवी को शक्ति और सृजन का मूल स्रोत माना गया है।
मत्स्य पुराण में वर्णित मंत्र,
मत्स्य पुराण में मंत्रों का प्रयोग मुख्यतः जप, यज्ञ और ध्यान के लिए बताया गया है। प्रमुख मंत्र इस प्रकार हैं:
1. विष्णु मंत्र
ॐ नमो नारायणाय
ॐ विष्णवे नमः
2. शिव मंत्र
ॐ नमः शिवाय
3. शांति मंत्र
ॐ शांति: शांति: शांति:
इन मंत्रों को मन की शुद्धि और आत्मिक उन्नति का साधन बताया गया है।
व्रत, दान और तीर्थ
मत्स्य पुराण में विभिन्न व्रतों, दानों और तीर्थों का वर्णन है। इसमें कहा गया है कि: अन्नदान सर्वोच्च दान है, तीर्थ यात्रा से पापों का क्षय होता है, मत्स्य पुराण का दार्शनिक महत्व।
यह पुराण सांख्य, योग और वेदांत दर्शन का समन्वय प्रस्तुत करता है। इसमें भक्ति और ज्ञान दोनों को समान महत्व दिया गया है।

मत्स्य पुराण और अन्य पुराणों से साम्यता

Matsya Purana illustration showing Lord Vishnu in Matsya avatar saving sage Manu, Hayagriva avatar restoring Vedas, sage Vedavyasa narration and Hindu scripture symbolism
मत्स्य पुराण का संबंध वामन, कूर्म और वराह पुराण से विशेष रूप से देखा जाता है। सभी में विष्णु अवतार सिद्धांत और धर्म की रक्षा का विचार समान है।
निष्कर्ष
मत्स्य पुराण केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन-दर्शन है। यह सिखाता है कि विनाश के समय भी ज्ञान और धर्म की नौका हमें पार लगा सकती है। भगवान मत्स्य का संदेश स्पष्ट है जब भी अज्ञान का जल बढ़े, तब ईश्वर ज्ञान के रूप में प्रकट होते हैं।
इस प्रकार मत्स्य पुराण भारतीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपरा का एक अमूल्य स्तंभ है।
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