लिंग पुराण: अर्थ, विषय, रचना-काल, और मंत्र ling puran

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 लिंग पुराण: अर्थ, विषय, रचना-काल, और मंत्र ling puran

लिंग पुराण: अर्थ, विषय, रचना-काल, और मंत्र ling puran
लिंग पुराण सनातन धर्म के अठारह महापुराणों में एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह ग्रंथ भगवान शिव के तत्त्व, उनके लिंग-स्वरूप, सृष्टि-तत्त्व, धर्म, भक्ति, योग, व्रत, तीर्थ, दान और मोक्ष-मार्ग का गहन विवेचन करता है। शैव परंपरा में इसकी विशेष प्रतिष्ठा है। इस विस्तृत लेख में हम लिंग पुराण का अर्थ, विषय-वस्तु, रचना-काल, कर्तृत्व, संरचना, दर्शन, प्रमुख कथाएँ, उपदेश, व्रत-विधान, तीर्थ-वर्णन तथा इसमें वर्णित/उल्लिखित प्रमुख मंत्रों का विस्तार से अध्ययन करेंगे।
1. ‘लिंग’ शब्द का अर्थ और दार्शनिक संकेत
‘लिंग’ संस्कृत में ‘चिह्न’, ‘सूचक’ या ‘लक्षण’ के अर्थ में प्रयुक्त होता है। शैव दर्शन में शिवलिंग निराकार ब्रह्म का साकार-प्रतीक है, जो सृष्टि, स्थिति और संहार के त्रिगुणात्मक चक्र से परे, परम सत्य का द्योतक है। लिंग पुराण में लिंग को केवल एक प्रतिमा न मानकर, चेतना का सार्वभौमिक संकेत बताया गया है। जहाँ रूप और अरूप का समन्वय होता है।
2. लिंग पुराण क्या है?
लिंग पुराण भगवान शिव को सर्वोच्च तत्त्व के रूप में प्रतिपादित करने वाला पुराण है। इसमें शिव को सगुण-निर्गुण, साकार-निराकार, करुणामय और योगेश्वर, सभी रूपों में वर्णित किया गया है। ग्रंथ का केंद्रीय विषय शिवलिंग की महिमा, उत्पत्ति और उपासना-विधि है।
यह पुराण धर्म (आचार), अर्थ (जीवन-व्यवस्था), काम (संयमित भोग) और मोक्ष (मुक्ति) के संतुलित मार्ग का निर्देश देता है।
3. लिंग पुराण की रचना कब हुई?
लिंग पुराण की रचना-तिथि पर विद्वानों में मतभेद हैं। सामान्यतः इसका संकलन ईसा की प्रारंभिक शताब्दियों (लगभग 5वीं से 10वीं शताब्दी) के बीच माना जाता है। कुछ अंश अपेक्षाकृत प्राचीन हैं, जबकि कुछ अध्याय बाद के काल में जोड़े गए प्रतीत होते हैं।
पुराणों की परंपरा में मौखिक-संप्रेषण के कारण एक ही ग्रंथ के विभिन्न संस्करण मिलते हैं।
4. लिंग पुराण के रचयिता कौन हैं?
परंपरागत मान्यता के अनुसार, सभी महापुराणों के रचयिता महर्षि वेदव्यास माने जाते हैं। लिंग पुराण भी इसी व्यास-परंपरा से संबद्ध है। आधुनिक विद्वान इसे एक दीर्घकालिक संकलन मानते हैं, जिसमें अनेक आचार्यों और शैव मनीषियों का योगदान रहा।
5. लिंग पुराण की संरचना
लिंग पुराण सामान्यतः दो भागों में विभक्त माना जाता है:-
पूर्वभाग
उत्तरभाग
अध्यायों की संख्या संस्करणानुसार बदलती है (लगभग 160–170 अध्याय)। विषय-विन्यास में सृष्टि-उत्पत्ति, देव-दानव कथाएँ, शिव-तत्त्व, व्रत-विधान, तीर्थ-महिमा और मोक्षोपदेश सम्मिलित हैं।
6. सृष्टि-तत्त्व और शिव
लिंग पुराण में सृष्टि का मूल कारण शिव को बताया गया है। ब्रह्मा और विष्णु के मध्य श्रेष्ठता-विवाद की कथा में अनादि-अनंत ज्योतिर्लिंग का प्राकट्य, शिव की सर्वोच्चता का प्रतीक है। यह कथा शैव दर्शन की आधारशिला मानी जाती है।

लिंग पुराण: अर्थ, विषय, रचना-काल, और मंत्र ling puran

7. शिव के रूप और गुण
सदाशिव: परम तत्त्व
महादेव: करुणामय ईश्वर
योगेश्वर: ध्यान और समाधि के अधिपति
नटराज: सृष्टि-नृत्य के नियंता
शिव त्रिगुणातीत हैं, फिर भी भक्तों के लिए सगुण रूप में सुलभ हैं।
8. शिवलिंग की महिमा
लिंग पुराण में शिवलिंग की स्थापना, पूजन-विधि, अभिषेक, बेलपत्र-प्रदान, और मंत्र-जप का विस्तार से वर्णन है। शिवलिंग को पंचभूतात्मक (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) माना गया है।
9. धर्म, आचार और व्रत
लिंग पुराण में अनेक व्रतों का विधान है, महाशिवरात्रि व्रत, सोमवार व्रत, प्रदोष व्रत, इन व्रतों का उद्देश्य मन-शुद्धि, इंद्रिय-संयम और शिव-भक्ति की वृद्धि है।
10. योग और मोक्ष-मार्ग
शिव को आदियोगी बताया गया है। लिंग पुराण में ध्यान, प्राणायाम, वैराग्य और ज्ञान के माध्यम से मोक्ष-प्राप्ति का मार्ग बताया गया है। भक्ति और ज्ञान का समन्वय इसकी विशेषता है।
11. लिंग पुराण में प्रमुख कथाएँ
A.ज्योतिर्लिंग प्राकट्य कथा
B. देव-दानव संग्राम
C. शिव-पार्वती विवाह
D. तारकासुर-वध
ये कथाएँ प्रतीकात्मक हैं और आध्यात्मिक संदेश देती हैं।
12. तीर्थ और दान
ग्रंथ में काशी, प्रयाग, नर्मदा, सोमनाथ आदि तीर्थों की महिमा वर्णित है। दान—विशेषकर अन्न, वस्त्र और जल—को पुण्यकारक बताया गया है।
13. लिंग पुराण में मंत्रों की परंपरा (सैद्धांतिक विवरण)
लिंग पुराण में मंत्र-जप को शिव-साधना का मुख्य साधन बताया गया है। यहाँ मंत्रों का उद्देश्य चित्त-शुद्धि और शिव-तत्त्व में लय है। प्रमुख रूप से पंचाक्षरी और षडाक्षरी परंपरा का संकेत मिलता है।
(क) पंचाक्षरी मंत्र
ॐ नमः शिवाय
  यह मंत्र शिव-भक्ति का सार माना गया है। पंचाक्षर पंचभूतों का शोधन करते हैं।
(ख) शिव-बीज मंत्र (परंपरागत)
ॐ ह्रीं नमः शिवाय
ॐ नमो भगवते रुद्राय
(ग) अभिषेक-संबंधी जप
जल, दुग्ध, घृत आदि से अभिषेक करते समय शिव-नाम-स्मरण की परंपरा बताई गई है।
ध्यान दें: पुराणों में मंत्रों का उल्लेख अक्सर उपदेशात्मक/परंपरागत रूप में मिलता है; उनका प्रयोग गुरु-उपदेश से ही करना श्रेयस्कर माना गया है।
14. दर्शन और समन्वय
लिंग पुराण शैव दर्शन के साथ वैदिक परंपरा का समन्वय करता है। यहाँ वेद, उपनिषद और आगम—तीनों का प्रभाव दिखता है।
15. सामाजिक और नैतिक उपदेश
अहिंसा
सत्य
दया                                                            (लिंग पुराण: अर्थ, विषय, रचना-काल, और मंत्र ling puran)
ब्रह्मचर्य
संयम
इन गुणों को शिव-भक्ति का अनिवार्य अंग बताया गया है।
16. लिंग पुराण का साहित्यिक महत्व
भाषा सरल, प्रतीकात्मक और काव्यात्मक है। कथात्मक शैली के साथ दर्शन का संतुलन इसे जनसुलभ बनाता है।
17. अन्य पुराणों से संबंध
लिंग पुराण का साम्य शिव पुराण, वायु पुराण और स्कंद पुराण से मिलता है। कई कथाएँ समान होते हुए भी दृष्टिकोण में भिन्नता है।
18. आधुनिक संदर्भ में लिंग पुराण
आज के समय में लिंग पुराण पर्यावरण-संतुलन, आंतरिक शांति और नैतिक जीवन का संदेश देता है। शिव का तपस्वी-योगी रूप आधुनिक जीवन के तनावों से मुक्ति का मार्ग दिखाता है।
19. उपासना-पद्धति (सारांश)
नित्य शिव-स्मरण, मंत्र-जप, ध्यान, सेवा और करुणा।
20. निष्कर्ष
लिंग पुराण केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जीवन-दर्शन है। यह शिव को बाह्य पूजा के साथ-साथ आंतरिक साधना का केंद्र बनाता है। लिंग जो रूप और अरूप का सेतु है मानव को परम सत्य की ओर ले जाने का प्रतीक है।

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