ब्रह्मवैवर्त पुराण रचना, विषयवस्तु, मंत्र, उद्देश्य brahms vreth puran
सनातन धर्म के अठारह महापुराणों में (ब्रह्मवैवर्त पुराण) का एक विशेष स्थान है। यह पुराण विशेष रूप से (श्रीकृष्ण, राधा), ब्रह्मा, प्रकृति और सृष्टि के वैवर्त (परिवर्तन) को विस्तार से समझाता है।
इस पुराण में भक्ति, दर्शन, सृष्टि-रहस्य, नारी-महिमा और वैष्णव परंपरा का अत्यंत सुंदर वर्णन मिलता है।
जहाँ अन्य पुराणों में शिव, विष्णु या ब्रह्मा की प्रधानता मिलती है, वहीं ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्रीकृष्ण को परम ब्रह्म माना गया है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण का अर्थ
ब्रह्म + वैवर्त = ब्रह्म का परिवर्तन
ब्रह्म → परम तत्व, परमात्मा
वैवर्त → परिवर्तन, विस्तार, रूपांतरण
ब्रह्म + वैवर्त = ब्रह्म का परिवर्तन
ब्रह्म → परम तत्व, परमात्मा
वैवर्त → परिवर्तन, विस्तार, रूपांतरण
✔अर्थात यह पुराण बताता है कि परम ब्रह्म किस प्रकार सृष्टि, देवता, प्रकृति और जीव रूप में प्रकट होता है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण का स्थान
सनातन परंपरा में 18 महापुराण माने जाते हैं:
सनातन परंपरा में 18 महापुराण माने जाते हैं:
1. ब्रह्म पुराण
2. पद्म पुराण
3. विष्णु पुराण
4. शिव (वायु) पुराण
5. भागवत पुराण
6. नारद पुराण
7. मार्कण्डेय पुराण
8. अग्नि पुराण
9. भविष्य पुराण
10. ब्रह्मवैवर्त पुराण
… आदि
2. पद्म पुराण
3. विष्णु पुराण
4. शिव (वायु) पुराण
5. भागवत पुराण
6. नारद पुराण
7. मार्कण्डेय पुराण
8. अग्नि पुराण
9. भविष्य पुराण
10. ब्रह्मवैवर्त पुराण
… आदि
✔ ब्रह्मवैवर्त पुराण को वैष्णव पुराणों में रखा जाता है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण की रचना किसने की:- परंपरागत मान्यता, रचयिता : महर्षि वेदव्यास, संवाद शैली : नारद जी और ब्रह्मा जी के बीच, सभी पुराणों की तरह, इसकी रचना का श्रेय भी वेदव्यास को दिया जाता है।
ऐतिहासिक दृष्टि, विद्वानों के अनुसार:, इसका वर्तमान स्वरूप 9वीं से 12वीं शताब्दी के बीच विकसित हुआ
इसमें वैष्णव और कृष्ण-भक्ति परंपरा का गहरा प्रभाव है, ब्रह्मवैवर्त पुराण कब लिखा गया?, दृष्टिकोण काल पारंपरिक द्वापर युग (वेदव्यास काल) ऐतिहासिक 800–1200 ईस्वी
✔ यह पुराण समय-समय पर संशोधित और विस्तारित होता रहा।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के खंड (भाग)
ब्रह्मवैवर्त पुराण कुल चार खंडों में विभाजित है:
ब्रह्मवैवर्त पुराण कुल चार खंडों में विभाजित है:
1. ब्रह्म खंड
मुख्य विषय:- ब्रह्मा जी की उत्पत्ति, सृष्टि की रचना, चारों वेदों का वर्णन, धर्म, कर्म और ज्ञान का विवेचन।
प्रमुख बातें:- ब्रह्मा जी भी श्रीकृष्ण से उत्पन्न माने गए हैं, सृष्टि का मूल कारण श्रीकृष्ण को बताया गया है
2. प्रकृति खंड:- यह खंड क्यों महत्वपूर्ण है, यह खंड नारी-महिमा और प्रकृति शक्ति को समर्पित है।
प्रमुख विषय:- राधा, लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती का विस्तार, स्त्री को शक्ति का मूल स्रोत बताया गया, प्रकृति और पुरुष का संतुलन।
✔ यह पुराण स्त्रियों को अबला नहीं, अपितु शक्ति मानता है।
3. गणेश खंड:- विषयवस्तु, गणपति जी की उत्पत्ति, गणेश पूजन का महत्व, विघ्नहर्ता के रूप में गणेश
विशेष तथ्य:- गणेश को श्रीकृष्ण का अंश बताया गया है, हर कार्य से पहले गणेश पूजन का विधान।
4. श्रीकृष्ण जन्म खंड:- सबसे महत्वपूर्ण खंड, यह खंड ब्रह्मवैवर्त पुराण का हृदय है। इसमें वर्णित विषय
श्रीकृष्ण का परम ब्रह्म स्वरूप, राधा-कृष्ण का दिव्य प्रेम, गोलोक का वर्णन, भक्ति मार्ग की महिमा।
✔ श्रीकृष्ण को विष्णु का अवतार नहीं, बल्कि सर्वोच्च परमात्मा बताया गया है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्रीराधा का स्थान: श्रीराधा का स्वरूप, राधा = ह्लादिनी शक्ति, श्रीकृष्ण की अंतरंग शक्ति, समस्त गोपियों की मूल। ब्रह्मवैवर्त पुराण रचना, विषयवस्तु, मंत्र, उद्देश्य brahms vreth puran
ब्रह्मवैवर्त पुराण में राधा सर्वोच्च देवी
ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णित प्रमुख मंत्र
1. श्रीकृष्ण मंत्र
ॐ क्लीं कृष्णाय नमः
भक्ति, प्रेम और आत्मिक शांति हेतु, वैष्णव परंपरा में अत्यंत लोकप्रिय
भक्ति, प्रेम और आत्मिक शांति हेतु, वैष्णव परंपरा में अत्यंत लोकप्रिय
2. राधा मंत्र
ॐ राधायै नमः दांपत्य सुख, प्रेम और सौहार्द
ॐ राधायै नमः दांपत्य सुख, प्रेम और सौहार्द
3. गायत्री मंत्र का वैष्णव रूप
ॐ देवकीनंदनाय विद्महे
वासुदेवाय धीमहि
तन्नो कृष्णः प्रचोदयात्
वासुदेवाय धीमहि
तन्नो कृष्णः प्रचोदयात्
ब्रह्मवैवर्त पुराण का उद्देश्य
1. भक्ति मार्ग की स्थापना:- कर्म और ज्ञान से ऊपर भक्ति को रखा गया
2. श्रीकृष्ण को परम ब्रह्म सिद्ध करना:- विष्णु नहीं, कृष्ण सर्वोच्च
3. नारी-शक्ति का सम्मान:- प्रकृति खंड इसका प्रमाण है
4. समाज में नैतिकता:- धर्म, करुणा, प्रेम और अहिंसा
ब्रह्मवैवर्त पुराण में धर्म की अवधारणा
धर्म = प्रेम + कर्तव्य
भक्ति ही मोक्ष का मार्ग
जाति नहीं, भाव प्रधान
भक्ति ही मोक्ष का मार्ग
जाति नहीं, भाव प्रधान
ब्रह्मवैवर्त पुराण और भक्ति आंदोलन
इस पुराण का प्रभाव: चैतन्य महाप्रभु, वल्लभाचार्य, सूरदास, मीराबाई, राधा-कृष्ण भक्ति की जड़ें इसी पुराण में मिलती हैं।
ब्रह्मवैवर्त पुराण का आध्यात्मिक महत्व
अहंकार का त्याग, प्रेम से ईश्वर की प्राप्ति, संसार को माया मानना।
आधुनिक समय में ब्रह्मवैवर्त पुराण की प्रासंगिकता
नारी सम्मान, प्रेम, समाज, मानसिक शांति, भक्ति और ध्यान।
निष्कर्ष
ब्रह्मवैवर्त पुराण केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक दर्शन है। यह सिखाता है कि: ईश्वर प्रेम है, भक्ति सर्वोच्च साधना है, श्रीकृष्ण परम सत्य हैं, राधा शक्ति का मूल हैं
यदि आप सनातन धर्म, कृष्ण भक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान को समझना चाहते हैं, तो ब्रह्मवैवर्त पुराण का अध्ययन अवश्य करें। ब्रह्मवैवर्त पुराण रचना, विषयवस्तु, मंत्र, उद्देश्य brahms vreth puran
यदि आप सनातन धर्म, कृष्ण भक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान को समझना चाहते हैं, तो ब्रह्मवैवर्त पुराण का अध्ययन अवश्य करें। ब्रह्मवैवर्त पुराण रचना, विषयवस्तु, मंत्र, उद्देश्य brahms vreth puran

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