ऋग्वेद क्या है इसकी संरचना मंडल, सूक्त, मंत्र (Rigveda Samhita)
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ऋग्वेद में हैं:
10 मंडल
1028 सूक्त (10 उपसूक्त सहित)
10,600+ मंत्र, प्रत्येक मंडल में अनेक ऋषि, देवता और विषय शामिल हैं।
इन्द्र – युद्ध, शक्ति
उषा – भोर की देवी
मित्र-वरुण – ऋत (सत्य-संहिता)
विश्वदेव – समस्त देव
2. महत्वपूर्ण ज्ञान:- अग्नि को “पृथ्वी और स्वर्ग का द्रविणोदाः” कहा गया, मनुष्य को कर्म और सत्य पालन की शिक्षा, उषा के सूक्त मनुष्य को नवोदय और कर्मठता की प्रेरणा देते हैं, मित्र-वरुण के मंत्र नैतिक अनुशासन, सत्य, नियम सिखाते हैं
उदाहरण मंत्र (1.1.1 – अग्नि स्तुति)
अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्।
अर्थ: “मैं अग्नि का ध्यान करता हूँ जो यज्ञ का पुरोहित और देवताओं का पुजारी है।”
अर्थ व शिक्षा:- अग्नि = ज्ञान, ज्ञान ही मनुष्य को “देवत्व” तक पहुँचाता है पहला ही मंत्र बताता है कि *जीवन की शुरुआत ज्ञान से होनी चाहिए
विषय:- युद्ध में विजय, प्रार्थना, मनुष्य के अंदर की ऊर्जा, अग्नि – जीवन का प्रकाश
शिक्षा:- मनुष्य का परिश्रम ही उसका “इन्द्र” है अग्नि = प्रेरणा, साहस, नेतृत्व
इसी मंडल (3.62.10) में गायत्री मंत्र है।, मुख्य देवता, अग्नि, इन्द्र, विश्वेदेव, प्रातःकालिक विज्ञान, प्रसिद्ध मंत्र
✔ गायत्री मंत्र(3.62.10) click here
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्॥
अर्थ:- हम सविता देव (सूर्य) के दिव्य तेज का ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।
शिक्षा:- ध्यान, बुद्धि-शोधन, प्रेरणा, श्रेष्ठ कर्म
विषय:- सत्य का अनुसंधान, तप और साधना, देवत्व और मानवता का संबंध
विशेष शिक्षा:- यह मंडल मनुष्य को सिखाता है:, (धर्म = सत्य + तप + करुणा), मनुष्य अपने परिश्रम से ही देवत्व को प्राप्त करता है, जीवन में संघर्ष आवश्यक है
मुख्य देवता:- अग्नि, मरुत, अर्पण और समर्पण, नदियाँ (सरस्वती आदि)
महत्वपूर्ण शिक्षा:- प्रकृति की स्तुति, विशेषकर नदियों की जल = जीवन, सामाजिक एकता का वर्णन, घर-परिवार, संस्कृति, गौ-संरक्षण, आर्थिक जीवन
मुख्य विषय:- कृषि, युद्ध, औषधि, व्यापार, कृषि-कार्य को धार्मिक और सामाजिक विकास का आधार बताया
शिक्षा:- परिश्रम, व्यवस्था, समाज निर्माण, कठिन परिश्रम से ही जीवन का विकास
कृषि से जुड़े कई मंत्र:
“क्षेत्रस्य पतिना वयम्” हम खेतों के स्वामी हैं। इससे पता चलता है कि वैदिक काल कृषि पर आधारित था।
देवता:- इन्द्र, अग्नि, मित्र-वरुण, विष्णु, मरुत
विशेष विषय:- मित्र-वरुण का न्याय, सामाजिक अनुशासन, सत्य और ऋत का पालन, राजा–प्रजा संबंध, शासन व्यवस्था
शासन संबंधी शिक्षा:- राजा को न्यायप्रिय होना चाहिए, समाज में ऋत (सत्य और नियम) आवश्यक, भ्रष्टाचार से दूर रहने का संकेत
विषय:- सोम, उत्सव, युद्ध में विजय, प्रकृति में ऊर्जा
शिक्षा:- सोम = आनंद + ऊर्जा मनुष्य को अपने जीवन में उत्साह और जोश बनाए रखना चाहिए, वीरता और साहस
पूरी संहिता का विषय:- केवल सोम रस और उसका शोधन।
सोम क्या है?:- यह किसी नशे का पेय नहीं, यह ऊर्जा, प्राण, उत्साह, ओज, तेज का प्रतीक है, योग-सांस, मेधा-शक्ति, मानसिक शक्ति का वर्णन|
मंत्र
“सोमः पवते जनिता मतीनाम्”
सोम बुद्धि का जनक है।
शिक्षा:- मनुष्य को अंतःकरण की शुद्धि रखनी चाहिए।
यह सबसे दार्शनिक मंडल है।
मुख्य विषय:- सृष्टि (Creation), मृत्यु (Death), पुनर्जन्म, समाज, नारी, विवाह, अंतिम संस्कार, राजधर्म, दान, मानव उत्पत्ति
प्रसिद्ध सृष्टि-सूक्त (10.129)
नासदीय सूक्त – विश्व की उत्पत्ति पर “नासदासीन्नो सदासीत्तदानीम”
सृष्टि से पहले कुछ भी नहीं था, न अस्तित्व न अनस्तित्व।
शिक्षा:- विश्व की उत्पत्ति को दार्शनिक ढंग से समझाया, आधुनिक बिग-बैंग सिद्धांत का संकेत
चार वर्णों का उद्भव:- समाज में सभी आवश्यक हैं, कोई ऊँच-नीच नहीं
नारी सूक्त (10.85 : विवाह सूक्त)
विवाह का वर्णन:- दाम्पत्य जीवन के आदर्श, नारी को “समाज की अग्रणी” कहा गया
ऋग्वेद क्या है इसकी संरचना — मंडल, सूक्त, मंत्र (Rigveda Samhita)
नीचे प्रत्येक देवता के विषय, प्रतीकवाद और प्रमुख मंत्र दिए गए हैं।
प्रमुख सूक्त:
अग्नि क्या प्रतीक है?:- ऊर्जा, प्रकाश, परिवर्तन, मनुष्य की चेतना
शिक्षा:- जीवन में ज्ञान का प्रकाश आवश्यक, गृहस्थ जीवन में संवाद, प्रेम और कर्म
प्रमुख मंत्र
1.32 – वृत्र-वध
प्रतीकवाद:-इन्द्र = भीतरी शक्ति
वृत्र = आलस्य, डर, अज्ञान
शिक्षा:- मनुष्य को अपने भीतर के “वृत्र” (नकारात्मकता) का नाश करना चाहिए, परिश्रम, साहस से सफलता मिलती है|
प्रमुख सूक्त
शिक्षा:- सत्य बोलना,पाप से दूर रहना, समाज में नियम और न्याय आवश्यक, शासन व्यवस्था के मूल सिद्धांत
मित्र = मानव संबंधों की पवित्रता
शिक्षा: प्रेम, शांति, सौहार्द
5. उषा — भोर, नवजागरण
प्रमुख सूक्त
शिक्षा:- हर दिन नई शुरुआत, आलस्य त्यागो, अवसरों का स्वागत करो
प्रमुख – 6.61, सरस्वती को “नदी + ज्ञान शक्ति” दोनों रूपों में वर्णन किया गया है।
शिक्षा:- परिवर्तन, साहस, जीवन में गतिशीलता
1.154, त्रिविक्रम
(3 कदम) वर्णन:- पृथ्वी, अंतरिक्ष, द्युलोक
अर्थ: चेतना का विस्तार।
✔ खगोल विज्ञान
सूर्य, चंद्र, कालचक्र, ऋतु, वर्षा, ध्रुव और नक्षत्र
✔ चिकित्सा
जल शुद्धि
अग्नि का रोग नाशक स्वरूप
✔ गणित
संख्या: शत, सहस्र, अयुत, नयुत, अर्बुद
✔ पर्यावरण
वृक्ष संरक्षण
जल को “अमृत” कहा
1. सत्य पर आधारित जीवन:- “ऋतं वाच्मि सत्यं वाच्मि”—सत्य बोलूंगा।
2. कर्म:- मनुष्य का भविष्य कर्म से बनता है।
3. नैतिकता:- वरुण मंत्र – पाप के भय से नहीं, नैतिकता से जीवन जियो।
4. एकत्व का सिद्धांत:- “एकम् सद् विप्रा बहुधा वदन्ति” – सत्य एक है, लोग उसे कई नामों से पुकारते हैं।
यह मानवता की सबसे महान दार्शनिक शिक्षा है।
5. स्त्री सम्मान:- नारी को समाज की “प्रेरक शक्ति”, पत्नी = सहधर्मचारिणी, स्त्री = बौद्धिक समानता
6. पर्यावरण:- नदियों को माता, हवा को दैवीय, अग्नि = जीवन
7. भाईचारा:- “संगच्छध्वं सं वदध्वं…”, साथ चलो, साथ बोलो, एकता रखो।
8. उत्साह:- सोम मंडल – जीवन में ऊर्जा और उत्साह आवश्यक।
✔ नासदीय सूक्त (10.129)
ब्रह्मांड की अनिश्चितता
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
✔ विष्णु का त्रिविक्रम
ब्रह्मांडीय यात्रा
✔ मित्र-वरुण सूक्त
नैतिकता
प्राकृतिक नियम
✔ गायत्री मंत्र
चिंतन
प्रकाश
✔ शासन व्यवस्था
प्रजा = सहयोगी
आर्थिक व्यवस्था = कृषि
✔ परिवार
पति-पत्नी समान
परिवार = धर्म का केंद्र
✔ शिक्षा प्रणाली
सनातन ज्ञान
विज्ञान + ध्यान + संस्कृति
प्राचीनतम ज्ञान
आध्यात्मिकता + विज्ञान का अद्वितीय मिश्रण
भारतीय संस्कृति की जड़
विश्व-मानवता का सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक ग्रंथ

