यजुर्वेद (Yajurveda) अत्यंत विस्तृत, सरल और समझने योग्य हिन्दी में
![]() |
| Read more |
✔ कौन-कौन से मंत्र हैं
✔ किस प्रकार (किस्में) हैं
✔ शाखाएँ
✔ विषय-वस्तु
✔ महत्त्व
✔ अनुष्ठान
✔ दार्शनिक भाव
✔ सम्पूर्ण संरचना
भूमिका : यजुर्वेद क्या है?
यजुर्वेद चार वेदों में से तीसरा वेद है:-
2. सामवेद
3. यजुर्वेद
4. अथर्ववेद
‘यजुर्वेद’ शब्द “यजुः” और “वेद” से बना है
यजुः = यज्ञ में उपयोग किए जाने वाले मंत्र
वेद = ज्ञान
इस प्रकार यजुर्वेद यज्ञ करने का विज्ञान कहलाता है। ऋग्वेद में स्तुति के मंत्र हैं, सामवेद में संगीत है, परंतु यजुर्वेद वह वेद है जिसमें यज्ञ कैसे करना है, किस प्रकार की आहुति देनी है, किस मंत्र के साथ क्या प्रक्रिया करनी है, इन सबका विस्तृत निर्देश है। यजुर्वेद को वैदिक काल में कर्म-वेद, क्रिया-वेद, अनुष्ठान-वेद भी कहा गया।
1.1 रचना:- मान्यता है कि यजुर्वेद भी अन्य वेदों की तरह अपरिष्कृत वैदिक वाङ्मय से विकसित हुआ।
ऋषि वैदिक काल में यज्ञ को जीवन का केंद्र मानते थे
ऋतु परिवर्तन
युद्ध
वर्षा
समाज कल्याण, सभी कार्य यज्ञ के माध्यम से किए जाते थे। यज्ञ जटिल थे, इसलिए कौन-सा मंत्र कब बोलना है, यह सभी को ज्ञात नहीं था। इसलिए एक विशेष वेद की आवश्यकता हुई—जो केवल यज्ञ की प्रक्रिया बताए।
इसीसे दो भाग बने:
2. शुक्ल (शुद्ध/व्यवस्थित) यजुर्वेद
वैदिक काल में यजुर्वेद की 101 से अधिक शाखाएँ थीं। आज मुख्यतः दो शाखाएँ उपलब्ध हैं
A. कृष्ण यजुर्वेद (Black Yajurveda):- इसे ‘कृष्ण’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि, इसमें मंत्र और ब्राह्मण भाग मिले-जुले हैं। भाषा कुछ कठिन, मिश्रित और प्राचीन है।
2. कठ संहिता
3. मैत्री संहिता
4. कपिष्ठल-कठ संहिता
B. शुक्ल यजुर्वेद (White Yajurveda);- इस संहिता में मंत्र भाग अलग, ब्राह्मण/व्याख्या अलग, इसका संगठन अत्यंत सुगठित है।
शुक्ल यजुर्वेद की प्रमुख शाखाएँ
2. काण्व संहित
अध्याय 3 : यजुर्वेद का आधारभूत स्वरूप
यजुर्वेद दो मुख्य भागों में विभाजित है
2. ब्राह्मण (विधि-विधान)
3.1 संक्षेप
ब्राह्मण = मंत्र कब, कैसे, क्यों बोले जाएँ?
मंत्रों की संख्या
शुक्ल यजुर्वेद में लगभग 1900 मंत्र
अध्याय 4 : यजुर्वेद में क्या लिखा है? (पूर्ण विस्तृत विवरण), यजुर्वेद में मुख्य विषय हैं- 4.1 यज्ञ-विधान
कौन-सी लकड़ी उपयोग करनी चाहिए
किस दिशा में मुख करके आहुति दें
कितनी आहुति दें
किस मंत्र के साथ किस देवता को प्रसन्न करें
हवन का उद्देश्य क्या है
यजुर्वेद में सत्रह से अधिक प्रकार के यज्ञों का वर्णन मिलता है।
यजुर्वेद (Yajurveda) अत्यंत विस्तृत, सरल और समझने योग्य हिन्दी में
2. वैश्वदेव
3. दार्शपूर्णमास यज्ञ
4. पितृयज्ञ
5. अश्वमेध यज्ञ
6. राजसूय
7. वाजपेय
8. सोमयज्ञ
9. अग्निष्टोम
10. पितृतरपन
11. चातुर्मास्य यज्ञ
इन सभी की विस्तृत प्रक्रिया यजुर्वेद में शब्द-दर-शब्द दी गई है।
इसके शिक्षाएँ, सत्य बोलो, धर्म का पालन करो, शत्रु पर विजय निर्बल को दबाकर नहीं, धर्म से करो, पावनता, संयम, दान का महत्त्व, परिवार और समाज का धर्म
यजुर्वेद 40:8
“असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्युर्मा अमृतं गमय।”
अर्थ:- असत् से सत् की ओर ले चल, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चल, मृत्यु से अमरत्व की ओर ले चल
इसमें वर्णन है:- राजा का कर्तव्य क्या हो, समाज में व्यवस्था कैसे हो, शांति कैसे बनी रहे, क्या दण्ड नीति हो, अर्थव्यवस्था कैसे चले,
यजुर्वेद 22:22—
“सर्वे भवन्तु सुखिनः” — ‘सब सुखी हों’
जल पवित्र है
पृथ्वी माता है
प्रसिद्ध मंत्र:- “भूर्बुवः स्वः पृथिवी रमणीयम्।” प्रकृति संरक्षण पर कई मंत्र हैं
👉अध्याय 5 : यजुर्वेद में कौन-कौन से मंत्र हैं? (महत्वपूर्ण मंत्रों का विस्तृत विवरण)
यहाँ मुख्य-मुख्य 40+ प्रमुख मंत्रों के अर्थ सहित वर्णन किया जा रहा है।
“ओं द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः पृथिवी शान्तिः…”
अर्थ:- आकाश, अंतरिक्ष, पृथ्वी, वनस्पति, जल, औषधि—सबमें शांति हो।
“अग्ने नय सुपथा राये…”
अर्थ:- हे अग्ने! हमें सत्य मार्ग पर ले चलो।
“ऋतं च सत्यं चाभीद्धात् तपसोऽध्यजायत”
अर्थ, सत्य और ऋत (नियम) तपस्या से उत्पन्न हुए। 5.4 गायत्री से संबंधित यजुर्वेदीय मंत्र भले गायत्री ऋग्वेद का है, पर विस्तृत उपयोग वर्णन यजुर्वेद में है।
अध्याय 6 : यजुर्वेद की संरचना — अध्याय, अनुवाक, मंत्र
यजुर्वेद (शुक्ल)
अध्याय 7 : यजुर्वेद के 40 अध्यायों का सार:- (शुक्ल यजुर्वेद के 40 अध्यायों का विस्तृत सार नीचे दिया गया है)
अध्याय 1–10:- यज्ञ की सामान्य तैयारी, स्वाहा मन्त्र, आहुतियाँ, अग्नि की स्थापना।
अध्याय 11–18:- सामान्य हवन विधि, पूजा प्रक्रिया, देवताओं के आह्वान।
अध्याय 19–22:- राजसूय यज्ञ, अभिषेक, राष्ट्र-नीति।
अध्याय 23–25:- अग्निष्टोम, सोमयज्ञ, सोमरस निष्पत्ति।
अध्याय 26–30
अध्याय 31–34:- विश्व सृष्टि का वर्णन, ब्रह्म का स्वरूप।
अध्याय 35–38:- दिव्य ऋचाएँ, पर्यावरण संरक्षण, देव-स्तुति।
अध्याय 39–40
ईशावास्य उपनिषद् एवं दार्शनिक ज्ञान।
ईशावास्य उपनिषद् का प्रसिद्ध श्लोक—
“ईशावास्यमिदं सर्वं…”
अध्याय 8 : यजुर्वेद के दार्शनिक संदेश
8.1 आत्मा और शरीर का संबंध, यजुर्वेद आत्मा को अजन्मा, अविनाशी, शुद्ध, ईश्वर का अंश बताता है।

