भागवत पुराण संपूर्ण विवरण (रचना, विषय-वस्तु, कथाएँ और मंत्र)
भागवत पुराण (श्रीमद्भागवत महापुराण) सनातन धर्म के अठारह महापुराणों में सर्वाधिक प्रतिष्ठित और भक्तिमय ग्रंथ माना जाता है। यह पुराण विशेष रूप से भगवान श्रीकृष्ण की लीला, भक्ति-मार्ग, वैराग्य और ज्ञान का अद्भुत समन्वय प्रस्तुत करता है। भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में भागवत पुराण को केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन-दर्शन के रूप में स्वीकार किया गया है।
भागवत पुराण का मूल उद्देश्य मनुष्य को कर्म, ज्ञान और भक्ति तीनों मार्गों का संतुलित बोध कराते हुए भगवद्-भक्ति की ओर प्रेरित करना है। इसमें सृष्टि-उत्पत्ति, अवतार-कथाएँ, राजाओं की वंशावली, योग-वैराग्य और मोक्ष के उपायों का विस्तार से वर्णन मिलता है।
भागवत पुराण क्या है?
भागवत पुराण एक वैष्णव पुराण है, जिसमें भगवान विष्णु के अवतार विशेषकर श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन किया गया है। इसे ‘श्रीमद्भागवत’ भी कहा जाता है। यह ग्रंथ न केवल कथा-संग्रह है, बल्कि तत्त्वज्ञान और भक्ति-साधना का गहन शास्त्र है।
भागवत पुराण की विशेषता यह है कि इसमें निर्गुण और सगुण भक्ति का सुंदर समन्वय मिलता है। श्रीकृष्ण को परब्रह्म के रूप में स्वीकार करते हुए उनकी लीलाओं को भक्तिमय भाव से प्रस्तुत किया गया है।
भागवत पुराण की रचना, रचयिता कौन हैं
भागवत पुराण के रचयिता महर्षि वेदव्यास माने जाते हैं। वेदव्यास को वेदों के संकलनकर्ता, महाभारत के रचयिता और पुराण-परंपरा के प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है।
रचना का उद्देश्य
महर्षि व्यास ने जब वेदों, उपनिषदों और महाभारत की रचना की, तब भी उन्हें आत्मसंतोष नहीं हुआ। नारद मुनि के उपदेश से प्रेरित होकर उन्होंने भगवान की भक्ति और लीलाओं पर आधारित एक ऐसे ग्रंथ की रचना की, जो सामान्य जन के लिए भी सुलभ हो। इसी भाव से "श्रीमद्भागवत पुराण" की रचना हुई।
रचना-काल
विद्वानों के अनुसार भागवत पुराण की रचना ईसा पूर्व 500 से ईसा के प्रारंभिक काल के बीच मानी जाती है। हालांकि इसकी परंपरा और मौखिक पाठ उससे भी प्राचीन है।
भागवत पुराण की संरचना
भागवत पुराण में कुल 12 स्कंध, 335 अध्याय और लगभग 18,000 श्लोक हैं। प्रत्येक स्कंध अपने-अपने विषय के लिए प्रसिद्ध है।
1. प्रथम स्कंध
भागवत कथा का प्रारंभ
राजा परीक्षित का प्रसंग
शुकदेव जी द्वारा भागवत कथा का उपदेश
2. द्वितीय स्कंध
ब्रह्मांड की रचना
विराट पुरुष का वर्णन
भक्ति के स्वरूप
3. तृतीय स्कंध
सृष्टि-उत्पत्ति का विस्तार
कपिल मुनि और देवहूति संवाद
सांख्य दर्शन
4. चतुर्थ स्कंध
दक्ष यज्ञ कथा
ध्रुव चरित्र
पृथु महाराज की कथा
5. पंचम स्कंध
भरत महाराज की कथा
नवद्वीप और भुवन-कोश
कर्म और पुनर्जन्म का सिद्धांत
6. षष्ठ स्कंध
अजामिल उपाख्यान
नाम-स्मरण की महिमा
यमदूत और विष्णुदूत संवाद
7. सप्तम स्कंध
प्रह्लाद चरित्र
नृसिंह अवतार
भक्त और भगवान का संबंध
8. अष्टम स्कंध
समुद्र मंथन
वामन अवतार
गजेंद्र मोक्ष
9. नवम स्कंध
सूर्य और चंद्र वंश
श्रीराम कथा का संक्षिप्त वर्णन
10. दशम स्कंध
श्रीकृष्ण लीला (जन्म, बाल-लीला, रासलीला, गोवर्धन)
मथुरा और द्वारका की कथाएँ
11. एकादश स्कंध
उद्धव गीता
वैराग्य और ज्ञान का उपदेश
12. द्वादश स्कंध
कलियुग का वर्णन
पुराण का उपसंहार
भागवत पुराण में क्या लिखा है
भागवत पुराण के प्रमुख विषय निम्नलिखित हैं: भगवान विष्णु और उनके अवतार, श्रीकृष्ण की दिव्य लीलाएँ, भक्ति योग की महिमा, कर्म और पुनर्जन्म, वैराग्य और मोक्ष का मार्ग, संतों और भक्तों की कथाएँ
यह ग्रंथ यह सिखाता है कि "निष्काम भक्ति" से ही जीवन का परम लक्ष्य 'मोक्ष'प्राप्त किया जा सकता है।
भागवत पुराण के प्रमुख पात्र: श्रीकृष्ण, नारद मुनि, शुकदेव जी, राजा परीक्षित, प्रह्लाद, ध्रुव, भरत महाराज
भागवत पुराण के प्रमुख मंत्र
1. मंगलाचरण
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
अर्थ: मैं भगवान वासुदेव (कृष्ण) को नमस्कार करता हूँ।
2. नाम-स्मरण मंत्र
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे |
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||
3. भक्ति श्लोक
स वै पुंसां परो धर्मो यतो भक्तिरधोक्षजे |
अहैतुकी अप्रतिहता यया आत्मा सुप्रसीदति ||
भागवत पुराण का महत्व: आध्यात्मिक शांति, भक्ति और प्रेम की अनुभूति, जीवन के कष्टों से मुक्ति, आत्मिक उन्नति, भागवत कथा का श्रवण और पाठ 'कलियुग में अत्यंत फलदायी' माना गया है।
भागवत पुराण और कलियुग
भागवत पुराण में कलियुग का विस्तृत वर्णन है, धर्म की हानि, अधर्म की वृद्धि और नाम-स्मरण की सर्वोच्चता। इसमें स्पष्ट कहा गया है कि 'हरिनाम संकीर्तन' से ही कलियुग में उद्धार संभव है।
उपसंहार
श्रीमद्भागवत पुराण केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का जीवंत स्रोत है। जो व्यक्ति श्रद्धा से इसका श्रवण और मनन करता है, वह जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझ पाता है।
भागवत पुराण हमें यह सिखाता है कि भगवान से प्रेम ही जीवन का परम सत्य है, और उसी प्रेम के माध्यम से मनुष्य परम शांति और मोक्ष को प्राप्त करता है।
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