विष्णु पुराण Divine Stories Avatars Creation Ancient

Sanatan Diary
0

       विष्णु पुराण Divine Stories Avatars Creation Ancient

विष्णु पुराण Divine Stories Avatars Creation Ancient

इसमें आपको मिलेगा:- विष्णु पुराण में क्या-क्या है, इसकी रचना कब हुई, किसने की, इसकी संरचना (अंश, अध्याय आदि), मुख्य शिक्षाएँ, विभिन्न कथाएँ, ब्रह्माण्ड, कल्प, प्रलय वर्णन, धर्म, कर्म, अवतार-तत्व, नर–नारायण, ध्रुव, प्रह्लाद, मनु आदि कथाएँ
महत्वपूर्ण मंत्र (हिन्दी+देवनागरी सहित)
विष्णु पुराण — सम्पूर्ण विस्तृत विवरण 
1. प्रस्तावना : विष्णु पुराण क्या है?
विष्णु पुराण अठारह महापुराणों में एक अत्यन्त प्राचीन और महत्वपूर्ण पुराण है। इसका मुख्य उद्देश्य विष्णु भगवान की महिमा, उनकी सृष्टि-व्यवस्था, अवतारों, धर्म, कर्म, नीति, समाज व्यवस्था, वंशावलियों और संसार की उत्पत्ति-विनाश आदि का विस्तृत ज्ञान देना है।

अनेक विद्वान इसे पुराण साहित्य का आधार-ग्रन्थ मानते हैं, क्योंकि इसकी भाषा सरल, शैली सहज, और विचार अत्यन्त सुव्यवस्थित है। इसे पुराणों का “पुराण-रत्न” भी कहा जाता है।
विष्णु पुराण में धर्म, नीति, समाज, परिवार, चरित्र, राजा-प्रजा संबंध, दान, तप, योग, ब्रह्म-ज्ञान, श्रेय-प्रेय, जन्म-मरण, 

मोक्ष—इन सबका अद्भुत समन्वय मिलता है।
यह ग्रंथ वैष्णव मत का प्रमुख आधार है, किन्तु इसकी दृष्टि व्यापक है; यहाँ शिव, ब्रह्मा, देवी, ऋषि—सभी का सम्मानजनक वर्णन है।
2. रचना कब हुई? (काल निर्धारण)
पुराणों का सटीक काल निर्धारण कठिन है, लेकिन प्राचीन इतिहासकारों ने अनेक प्रमाणों के आधार पर विष्णु पुराण की रचना इस प्रकार मानी है।
अनुमानित रचना काल : 1वीं से 4थी शताब्दी CE
कुछ विद्वान इसे और अधिक प्राचीन मानते हैं और कहते हैं कि इसकी मौलिक सामग्री महाभारत युद्ध (3000+ वर्ष) के आसपास विकसित हुई और बाद में संकलित हुई।
ग्रंथ का संकलन काल : 4th–6th century CE (सम्भवतः)
यह काल वह है जब महापुराणों का अंतिम रूप तैयार किया गया। कुल मिलाकर विष्णु पुराण 2000+ वर्ष से भी अधिक पुराना एक अत्यंत प्राचीन धर्म-ग्रंथ है।
3. रचना किसने की?
विष्णु पुराण के रचयिता महर्षि पराशर माने जाते हैं।
पराशर कौन थे?
महर्षि वशिष्ठ के पौत्र, शंतनु और मत्स्यगंधा (सत्यवती) के पुत्र, महाभारत के लेखक वेदव्यास के पिता, शक्तिमुनि के पुत्र,
महर्षि पराशर वैदिक काल के महान ऋषि थे। यह पुराण उनके द्वारा मैत्‍त्रेय ऋषि को उपदेश रूप में बताया गया है।
4. विष्णु पुराण की संरचना (अंश और अध्याय)
विष्णु पुराण 6 अंशों (भागों) में विभाजित है, कुल मिलाकर लगभग 23,000 श्लोक परंपरागत रूप से माने जाते हैं (विभिन्न पांडुलिपियों में अंतर है)।
अंश 1 — सृष्टि का वर्णन (Creation)
सृष्टि-क्रम: अव्यक्त → प्रकृति → महत → अहंकार → पंचतन्मात्राएँ
त्रिदेवों की उत्पत्ति
प्रथम मनु स्वायम्भुव
ध्रुव की कथा
वेन, पृथु, प्राची, प्रजापति
अंश 2 — भूगोल और ब्रह्माण्ड
सप्तद्वीप
जम्बूद्वीप
पर्वत, नदियाँ, समुद्र
लोकों का विवेचन
ग्रह-नक्षत्र, सूर्य-चन्द्र की गति
अंश 3 — कुल-वंश और समय-चक्र
सूर्य-वश
चन्द्र-वश
यदुवंश
कुरुवंश और पाण्डव
माप, काल-गणना, कल्प
अंश 4 — कृष्ण-चरित
श्रीकृष्ण का जन्म
कंस-वध
द्वारका-लीला
महाभारत घटनाओं का वैष्णव विवेचन
अंश 5 — विष्णु भक्तों की कथाएँ
प्रह्लाद
नारद का जीवन
वामन अवतार
त्रिविक्रम लीला
अन्य अवतारों का वर्णन
अंश 6 — धर्म, नीति, मोक्ष
दान-धर्म
अशौच, श्राद्ध
अहिंसा, सत्य, तप
भक्तियोग
विष्णु सहस्रनाम
मोक्ष और परम तत्त्व
5. विष्णु पुराण में क्या-क्या विषय हैं 

           विष्णु पुराण Divine Stories Avatars Creation Ancient

अब पूरे विष्णु पुराण की सामग्री को विस्तार में समझते हैं।
भाग–1 : सृष्टि-विज्ञान एवं ब्रह्माण्ड
विष्णु पुराण का आरम्भ स्वयं पराशर मुनि के भाषण से होता है जिसमें वे सृष्टि की उत्पत्ति बताते हैं। सृष्टि का दार्शनिक आधार, सृष्टि का एकमात्र कारण विहारी, सर्वव्यापी, अनन्त विष्णु को बताया गया है। प्रकृति/माया उनकी दिव्य शक्ति है। उसी से त्रिगुणात्मक जगत निर्मित हुआ।
सृष्टि निर्माण क्रम
1. अव्यक्त (माया)
2. महत (बुद्धि-तत्त्व)
3. अहंकार (सत्त्व, रजस, तमस)
4. पंच-तन्मात्राएँ
5. पाँच महाभूत (आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी)
6. इन्द्रिय, मन, चित्त
7. प्राणी
ब्रह्मा को सृष्टि-कर्ता, विष्णु को पालनकर्ता, और रुद्र को लयकर्ता बताया गया है।
भाग–2 : मनुओं का वर्णन और मानव-सभ्यता
विष्णु पुराण में चौदह मनुओं का विस्तृत वर्णन मिलता है। पहले मनु—स्वायम्भुव मनु, जिनसे मानव-सभ्यता का आरम्भ माना गया है। उनकी संतानों में प्रजापति, ध्रुव, उत्तानपाद, प्रियेव्रत आदि आते हैं।

ध्रुव की कथा:- ध्रुव का तप, उनका अद्भुत धैर्य, नारद का उपदेश, और अंत में विष्णु के दर्शन, यह कथा विष्णु पुराण की प्रमुख प्रेरक कथा है। ध्रुव को विष्णु ने अक्षय ध्रुव-तारा बनने का आशीर्वाद दिया।
भाग–3 : भूगोल, खगोल और ब्रह्माण्ड संरचना
सप्तद्वीप
1. जम्बूद्वीप
2. प्लक्ष
3. शाल्मली
4. कुश
5. क्रौंच
6. शाक
7. पुष्कर
जम्बूद्वीप में भारतवर्ष, हिमालय, सिंधु, गंगा, नर्मदा आदि का उल्लेख मिलता है।
खगोल
सूर्य की गति
चन्द्रमा और उसके कला-चक्र
नक्षत्र, राशि
लोक—भूलोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक
ध्रुव-मंडल
दिन/रात/मौसम
पुराण वैज्ञानिक शैली में सूर्य की क्रांतियों, ऋतुओं, ग्रहों की दूरी आदि पर भी प्रकाश डालते हैं।
भाग–4 : अवतार-तत्त्व (10 अवतार):-विष्णु पुराण में दशावतार का विस्तृत वर्णन मिलता है:
1. मत्स्य
2. कूर्म
3. वराह
4. नृसिंह
5. वामन
6. परशुराम
7. राम
8. कृष्ण
9. बुद्ध
10. कल्कि
प्रत्येक अवतार की आवश्यकता, लीला और उद्देश्य अलग-अलग है।
भाग–5 : भक्त-कथाएँ और धर्म-सिद्धांत
प्रह्लाद कथा, अत्यंत मार्मिक वर्णन, हरिण्यकशिपु का अत्याचार, नृसिंह का अवतरण, प्रह्लाद की अडिग भक्ति, राजा पृथु, धरती माता का दुधारू गाय रूप में आना, पृथु के राज्य में समृद्धि, मन्वंतर कथाएँ।
भाग–6 : मोक्ष-धर्म, नीति और व्यवहारिक ज्ञान, विष्णु पुराण में मोक्ष को अभेदज्ञान और अनन्य भक्ति से प्राप्त बताया गया है।
धर्म के चार आधार
1. सत्य
2. अहिंसा
3. दया
4. दान
राज-धर्म:- राजा का कर्तव्य, जन-सेवा, न्याय, शिक्षा, कृषि, व्यापार, आचार और अशौच, जन्म-मरण के संस्कार, श्राद्ध, पितृ-तर्पण, गुरु-शिष्य परंपरा, योग, ध्यान, प्राणायाम, एकाग्रता।
6. विष्णु पुराण का दार्शनिक निष्कर्ष
अद्वैत-वैष्णव दृष्टि, ब्रह्म = विष्णु, संसार उनकी माया, जीव उनका अंश, मुक्त होने का मार्ग भक्ति + ज्ञान, भगवान सर्वव्यापी हैं, सूक्ष्म रूप से सबमें निवास क्षेत्रज्ञ, समर्थ, अनन्त भक्ति सर्वोपरि ज्ञान, तप, दान, यज्ञ—सब भक्ति की तुलना में गौण कहलाते हैं।
7. महत्वपूर्ण मंत्र (देवनागरी + हिन्दी अर्थ)
अब आपको विष्णु पुराण के प्रमुख मंत्र, स्तुति, और प्रार्थनाएँ दी जा रही हैं।
(1) विष्णु महामंत्र
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
अर्थ: मैं भगवान वासुदेव (विष्णु) को बार-बार प्रणाम करता हूँ।यह पुराण का मूल बीज-मंत्र है—सबसे महत्वपूर्ण।
(2) विष्णु गायत्री मंत्र
“ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि।
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥”
अर्थ: हम नारायण को जानते हैं, वासुदेव का ध्यान करते हैं; वे विष्णु हमें सर्वोत्तम मार्ग की प्रेरणा दें।
(3) श्रीहरि स्तुति (विष्णु पुराण 1.17)
“शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्
विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥”
अर्थ:- जो शान्त स्वभाव वाले हैं, शेषनाग पर शयन करते हैं, जिनका नाभि कमल है, जो जगत के आधार हैं—ऐसे विष्णु को मैं प्रणाम करता हूँ।
(4) प्रह्लाद-रक्षित मंत्र
“ओं नमो नारायणाय”
यह प्रह्लाद को स्वयं विष्णु ने दिया था।
(5) नरायण कवच (महत्वपूर्ण अंश)
“ॐ नमो नारायणायेति मंत्रोऽयं परमः स्मृतः।”
यह कवच रक्षण, भय-निवारण और मानसिक शांति देता है।
(6) ध्रुव स्तुति (विष्णु पुराण 1.12)
“नान्यं विहाय भगवन् भजतां पुमान्
अप्यञ्जसे स्वविरचारणचारु-चित्रम्।
आत्माराममात्मनि स्थितं प्रपद्ये
नारायणं नारक-शोच-विनाशनम्॥”
अर्थ:- हे भगवान! भक्ति करने वाला मनुष्य आपसे बढ़कर किसी को नहीं मान सकता। आप आत्माराम हैं; आपके स्मरण से सारे दुःख मिट जाते हैं।
(7) चरण-शरण मंत्र
“ॐ श्री विष्णवे नमः”
8. विष्णु सहस्रनाम पुराण में महिमा:- विष्णु पुराण में कहा गया है “जो मनुष्य प्रतिदिन विष्णु सहस्रनाम का जप करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर परम पद प्राप्त करता है।”
9. विष्णु पुराण की कथाओं का विस्तृत सार:- अब आप नीचे प्रत्येक प्रमुख कथा का विस्तृत सार पढ़िए।
(1) ध्रुव कथा तप, भक्ति और धैर्य:- ध्रुव पाँच वर्ष का बालक था। सौतेली माँ ने अपमानित किया, उसने माँ सुनिति से पूछा “मैं भगवान को कैसे पा सकता हूँ?”
नारद मुनि ने बताया:-“नारायण का मंत्र जप करो।” ध्रुव ने छह महीने का घोर तप किया। विष्णु प्रकट हुए और वर दिया, ध्रुव-तारा का अमर पद। यह कथा भक्ति की सबसे बड़ी मिसाल है।
(2) प्रह्लाद कहानी — नृसिंह अवतार:- हिरण्यकशिपु का आदेश “नारायण का नाम मत लो।”
प्रह्लाद का उत्तर “विष्णु सर्वत्र हैं।”हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए, हाथी, आग, सर्प, विष चट्टान से गिराना। 
सब व्यर्थ। अन्त में स्तम्भ फाड़कर भगवान नृसिंह प्रकट हुए, उन्होंने हिरण्यकशिपु का वध किया। यह धर्म की विजय का प्रतीक है।
(3) वामन अवतार — बलि का उद्धार:- राजा बलि अधर्मी नहीं था—धर्मी और पराक्रमी था। किन्तु उसने इन्द्रलोक छीन लिया। देवताओं की रक्षा हेतु भगवान वामन बाल रूप में आए, उन्होंने तीन कदम में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड नाप लिया। बलि को पाताल-राज्य दिया गया और वर “तू मेरा महान भक्त है।”
(4) मनु-नौका कथा — मत्स्य अवतार:- प्रलय के समय मत्स्य रूप में भगवान ने मनु की रक्षा की। सबको सुरक्षित नौका में बैठाया। मत्स्य अवतार ने सभ्यता के पुनः प्रारंभ का मार्ग बताया।
(5) कृष्ण-लीला:- विष्णु पुराण में श्रीकृष्ण के, जन्म, बाल-लीलाएँ, गोवर्धन, कंस वध, महाभारत रहस्य, उद्धव उपदेश, जैसे महत्वपूर्ण प्रसंगों का वर्णन मिलता है।
10. विष्णु पुराण की शिक्षाएँ (Summary)
1. ईश्वर एक है – वही विष्णु है।
 सृष्टि उसी से उत्पन्न, उसी में लीन।
2. धर्म बिना दुनिया सम्भव नहीं।
3. अहिंसा, दान और सत्य—मानव-धर्म के स्तम्भ।
4. राजा का कर्तव्य – प्रजा का कल्याण।
5. भक्ति—मोक्ष का सरलतम मार्ग।
6. कर्म फल देता है—अच्छा भी, बुरा भी।
7. समय चक्राकार है—सृष्टि और प्रलय चक्र में चलते हैं।
11. विष्णु पुराण की विशिष्टता
सबसे संक्षिप्त और सारगर्भित पुराण, दर्शन + कथाएँ + भूगोल + इतिहास—सबका समन्वय, विष्णु को सर्वव्यापी बताता है।
समाज व्यवस्था का स्पष्ट दृष्टिकोण, शिक्षा, नीति, व्यवहार पर उपयोगी उपदेश
समापन
विष्णु पुराण केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि भारतीय दर्शन, आध्यात्म, इतिहास, भूगोल, राजनीति, समाज, मनोविज्ञान का अद्भुत खजाना है।
इसे पढ़ने से मन में श्रद्धा बढ़ती है, धर्म-नीति की समझ गहरी होती है जीवन में संतुलन आता है

                          विष्णु पुराण Divine Stories Avatars Creation Ancient

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)
3/related/default