ब्रह्म पुराण की रचना-काल, प्रमुख कथाएँ, स्तोत्र/मंत्र puran
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भारत की महान वैदिक परंपरा में पुराणों का एक विशेष और सम्मानित स्थान रहा है। पुराण वे महाग्रन्थ हैं, जिनमें सृष्टि की उत्पत्ति, देवताओं की कथाएँ, तीर्थों का महात्म्य, धर्म के नियम, राजधर्म, श्राद्ध, व्रत, दान, योग, संस्कार, कथा-चक्र एवं गूढ़ आध्यात्मिक सिद्धांत सरल शैली में वर्णित हैं। परम्परा के अनुसार पुराणों की संख्या "अठारह" मानी गई है, जिन्हें “महापुराण” कहा जाता है। इन्हीं महापुराणों में से एक है "ब्रह्म पुराण"।
ब्रह्म पुराण को आदिकाल से अत्यंत महत्वपूर्ण, प्राचीन, और धार्मिक दृष्टि से प्रतिष्ठित माना गया है। इसे कभी-कभी “आद्य पुराण” भी कहा जाता है, क्योंकि परम्परा के अनुसार यह उन प्रारम्भिक पुराणों में से है जिनका उल्लेख स्वयं अन्य ग्रंथों में भी मिलता है।
अब हम ब्रह्म पुराण को विस्तार से समझते हैं, यह क्या है, इसमें क्या-क्या वर्णित है, इसके प्रमुख अध्याय, कथाएँ, महत्व, रचना-काल, इसमें कौन से प्रमुख मंत्र या स्तुति हैं आदि।
ब्रह्म पुराण अठारह महापुराणों में पहला माना जाता है। नाम से ऐसा प्रतीत होता है कि इसमें ब्रह्मा की कथाएँ होंगी, परन्तु वास्तव में इसमें विष्णु, शिव, सूर्य, तीर्थों, भूगोल, व्रतों, उपवासों, धर्मशास्त्र, राजनीति, दान, और आध्यात्मिक साधना का व्यापक वर्णन मिलता है।
इसमें सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की सृष्टि-विनाश की प्रक्रिया को भी दर्शाया गया है। यह पुराण केवल एक धार्मिक ग्रन्थ नहीं बल्कि भारत के भूगोल, इतिहास, संस्कृति और दर्शन का प्रामाणिक व विशाल ग्रन्थ है।
पुराणों का रचना-काल निश्चित रूप से बताना कठिन है, क्योंकि ये ग्रंथ कई शताब्दियों में विकसित हुए हैं। परन्तु विद्वानों के अनुसार
गुप्त काल और उसके बाद के समय में पुराणों में विस्तार किया गया। तीर्थ-माहात्म्य, विशेष रूप से कोंकण, जगन्नाथपुरी, तथा भगवान जगन्नाथ से संबंधित विवरण इसी अवधि में जोड़े गए।
👉 अंतिम रूप : 8वीं–10वीं सदी
इसमें वैदिक, पौराणिक, दार्शनिक, और स्थानीक परम्पराओं के अंश सम्मिलित हैं। ब्रह्म पुराण वर्तमान स्वरूप में लगभग 12000 श्लोकों का पाया जाता है।
अब हम विस्तार में देखते हैं कि ब्रह्म पुराण में वास्तव में क्या-क्या लिखा है।
2. स्थिति
3. संहार
4. तिरोभाव (लीला)
नैमित्तिक
प्राकृत
आत्म
कूर्म
वराह
नृसिंह
वामन
परशुराम
राम
कृष्ण
विशेष: रामकथा और कृष्णकथा का वर्णन भी मिलता है, पर यह उतना विस्तृत नहीं जितना रामायण या भागवत में है।
इसमें बताया गया है सूर्य को ब्रह्मांड का आत्मा कहा गया है।, सूर्य से ही सजीवों में प्राण, ऊष्मा, बल, बुद्धि का संचार होता है।, रोगों से मुक्ति में सूर्य उपासना अत्यंत प्रभावी है।, सूर्य को बुद्धि-ब्रह्म कहा गया है।
ब्रह्म पुराण में ‘आदित्य हृदय स्तोत्र’ की महिमा विस्तार से समझाई गई है (हालाँकि यह स्तोत्र मूल रूप से वाल्मीकि रामायण का हिस्सा है)।
ब्रह्म पुराण की रचना-काल, प्रमुख कथाएँ, स्तोत्र/मंत्र puran
तपः
जनः
महः
स्वः
भुवः
भूः
सुतल
तलातल
महातल
रसातल
पाताल
इसके अलावा, जम्बूद्वीप, भारतवर्ष
9 खंडों का विस्तार, नदियों, पर्वतों और महासागरों का वर्णन बहुत विस्तार से मिलता है। विशेष रूप से भारतवर्ष को “कर्मभूमि” कहा गया है “यह वही भूमि है जहाँ कर्म के आधार पर मुक्ति प्राप्त होती है।”
(A) कोंकण क्षेत्र का महात्म्य यह ब्रह्म पुराण की विशेषता है।
क्योंकि पुराणों में कोंकण क्षेत्र (महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक का समुद्रतटीय भाग) का इतना विस्तृत वर्णन और कहीं नहीं मिलता।
(B) जगन्नाथ पुरी का वर्णन:- पुरी धाम के महत्व का एक प्राचीन स्रोत ब्रह्म पुराण ही है। जगन्नाथ जी की उत्पत्ति, नीलमाधव कथा, पुरी के मंदिर का माहात्म्य, रथ यात्रा का पौराणिक उल्लेख सब मिलता है।
(6) व्रत, उपवास, दान, श्राद्ध:- इसमें निम्नलिखित विषयों पर विस्तृत शास्त्रीय विवरण मिलता है, व्रत, एकादशी, शिवरात्रि, संकष्टी, सूर्य सप्तमी, प्रदोष, दान, अन्नदान, गोदान, जलदान, भूमि दान, स्वर्ण दान का फल, श्राद्ध, पितरों की तृप्ति, श्राद्ध नियम, कर्मफल
2. भक्ति योग
3. कर्म योग
भूताधिपं महायोगिनं नमामि पुरुषोत्तमम्॥
(2) सूर्य स्तुति (सूर्य-उपासना से संबंधित श्लोक)
त्वया विनाऽस्ति न प्रणो न जीवो न गतिः क्वचित्॥
जगत्सर्गस्थितिधरं प्रणमामि पुनः पुनः॥
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
(यह स्तुति भागवत/मार्कण्डेय पुराण में भी मिलती है, लेकिन ब्रह्म पुराण में भी देवी के स्वरूप का वर्णन है।)
तृप्तिं कुरुत मे नित्यं नमस्तुभ्यं नमो नमः॥
2. विष्णु और सूर्य उपासना दोनों का संगम
3. कोंकण क्षेत्र का प्रामाणिक दस्तावेज
4. व्रत-दान-तीर्थ के नियमों का मूल आधार
5. भूगोल और ज्योतिष का प्राचीन ज्ञान Click to Buy
6. आध्यात्मिक साधना का मार्गदर्शक

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