पद्म पुराण इसकी रचना खंड कथाएँ दर्शन padam puran

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       पद्म पुराण इसकी रचना खंड कथाएँ दर्शन padam puran

पद्म पुराण इसकी रचना खंड कथाएँ दर्शन padam puran
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(रचना काल, विषय-वस्तु, संरचना, खंड, कथाएँ, दर्शन, उल्लेखित मंत्र, महत्व
भूमिका : पद्म पुराण क्या है?
पुराण-साहित्य भारतीय धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपरा का अत्यंत महत्त्वपूर्ण अंग है। पुराण केवल कथा-संग्रह नहीं, बल्कि धर्म, इतिहास, विज्ञान, भूगोल, संस्कृति, संस्कार, भक्ति, कर्मकांड और ज्ञान इन सभी का विश्वकोश हैं। इन्हीं अठारह महापुराणों में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण पुराण है “पद्म पुराण”।

पद्म शब्द का अर्थ है कमल, जो पवित्रता, सत्य, प्रकाश, सृजन और दिव्यता का प्रतीक है।

यह पुराण प्रमुख रूप से विष्णु भक्तिमार्ग, सृष्टि-चक्र,धर्मशास्त्र, आचार, तीर्थ, कर्म, व्रत, नैतिक जीवन, तथा मोक्षमार्ग का अत्यंत विस्तृत ग्रंथ है।

अन्य पुराणों की तुलना में पद्म पुराण में अत्यधिक व्यापक विषय शामिल हैं: सृष्टि का वर्णन, देवी-देवताओं की कथाएँ, भगवान विष्णु, लक्ष्मी, शिव, ब्रह्मा की महिमा, तीर्थों का महत्व, जीवन, मृत्यु, पुनर्जन्म का विज्ञान, विविध लोक, ग्रह, नक्षत्र और ब्रह्मांड का ढांचा, धर्म, दान, तप और योग का विश्लेषण

रामकथा एवं कृष्णकथा, ब्रह्मवैवर्त, ब्रह्माण्ड, पाताल और स्वर्ग का वर्णन, ज्योतिष, आयुर्वेदिक संकेत, ऋषियों के उपदेश, पाप-पुण्य का तत्त्वज्ञान, यह पुराण विशाल ग्रंथ है, जिसके 55,000+ श्लोक बताए जाते हैं, जो इसे पुराण-साहित्य में सबसे बड़े पुराणों में से एक बनाते हैं।
पद्म पुराण की रचना कब हुई? रचनाकाल
पद्म पुराण का निर्माण एकल समय में नहीं हुआ। यह कई शताब्दियों में विकसित हुआ। विद्वानों के अनुसार:
4वीं शताब्दी ईसा पूर्व के प्रारंभिक बीज
3वीं-7वीं शताब्दी ईस्वी के बीच अधिक विस्तार
10वीं-12वीं शताब्दी तक कुछ हिस्सों का पुनर्लेखन और विस्तार
वर्तमान रूप मध्यकाल (11वीं–14वीं शताब्दी) में पूरा हुआ माना जाता हैसार रूप में, पद्म पुराण की रचना 1500 वर्षों के दौरान विकसित हुई।
पद्म पुराण किसने लिखा?
पुराणों के सर्वमान्य रचयिता महर्षि वेदव्यास माने जाते हैं। परंतु: वेदव्यास ने मूल रूप स्थापित किया बाद के अनेक ऋषियों, आचार्यों और परंपराओं ने इसमें योगदान किया।

विभिन्न कालों में पुन:संस्कार, व्याख्या और विस्तार हुआ इस प्रकार, पद्म पुराण एक सामूहिक वैदिक परंपरा का विशाल ग्रंथ है।
पद्म पुराण में क्या-क्या है? (संपूर्ण सार)
पद्म पुराण छह बड़े खंडों में विभाजित है:
1. सृष्टिखंड
2. भूमिखंड
3. स्वर्गखंड
4. पातालखंड
5. उत्तरखंड
6. क्रीडाखंड / अध्यात्म खंड
इनमें: ब्रह्मा-विष्णु-शिव संवाद, तीर्थों का महत्व, विष्णु और लक्ष्मी की महिमा, देवी की उपासना, धर्मशास्त्र, कर्मकांड, ग्रहमंडल और ब्रह्मांड, रामायण और कृष्णकथा, व्रत, उपवास और दान, मोक्ष मार्ग, अवतार सिद्धांत, राजा-धर्म, 
स्त्री-धर्म, गृहस्थ-धर्म, पुनर्जन्म कहानियाँ, तप, योग, वेदान्त, सबका अत्यंत विशाल वर्णन है। आगे आप इसका (खंडवार विस्तृत विवरण) पढ़ेंगे। Know more

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(1) सृष्टि खंड : सृजन का विज्ञान (लगभग 1000 शब्द)
इस खंड में सृष्टि का प्रारंभ ब्रह्मा-विष्णु-शिव संवाद से होता है।
विष्णु समुद्र-शय्या पर योगनिद्रा में स्थित हैं, उनके नाभि से कमल उत्पन्न होता है और उसी कमल पर ब्रह्मा प्रकट होते हैं।
मुख्य विषय: महाप्रलय का वर्णन, नाभिकमल से ब्रह्मा की उत्पत्ति, ब्रह्माण्ड के 14 लोक, समय चक्र (कल्प, युग, मन्वंतरों), पृथ्वी निर्माण, प्राणियों की सृष्टि, मनुष्यों का उद्भव,

ऋषि, देव, असुर, गंधर्व, यक्ष, नाग, किन्नर, अप्सरा की उत्पत्ति, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की स्थापना, वर्णाश्रम व्यवस्था की उत्पत्ति, सृष्टि का मूल सिद्धांत।
सृष्टि का आधार तीन शक्तियों पर है:
सत्व – विष्णु
रजस् – ब्रह्मा
तमस् – शिव
ये तीन ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को संतुलित रखते हैं।
एक प्रमुख श्लोक (पद्म पुराण)
(भावार्थ सहित)
“एकं नारायणं देवं सर्वसृष्टिकरणं परम।
नाभिकमलसंभूतो ब्रह्मा जगदधीश्वरः॥”
भावार्थ: संपूर्ण सृष्टि का मूल एक ही परमेश्वर नारायण हैं। उन्हीं के नाभिकमल से जगत् के रचयिता ब्रह्मा उत्पन्न हुए।(2) भूमिखंड : पृथ्वी, तीर्थ और राजधर्म 
यह खंड पृथ्वी के भूगोल, पर्वत, नदियाँ, तीर्थ, महापुरुष कथाएँ तथा धर्मशास्त्र से भरा है। महत्वपूर्ण विषय, भारतवर्ष का विस्तृत वर्णन, सात द्वीप और समुंदर, सात पर्वत, सात नदियाँ, गंगा अवतरण, तीर्थों का महत्व (कुंभ, प्रयाग, वाराणसी, पुष्कर, बद्रीनाथ आदि)

वर्ण-धर्म और आश्रम-धर्म, राजा-धर्म, खेती, व्यापार, दान, न्याय-शास्त्र, मरणोत्तर कर्म, पृथ्वी का धार्मिक स्वरूप
पुराण के अनुसार पृथ्वी केवल भूगोल नहीं बल्कि एक जीवित शक्ति है “भूमि देवी”।
तीर्थों का महात्म्य
भूमिखंड में 500 से अधिक तीर्थों का वर्णन है। सबसे महान तीर्थ कहा है:
“प्रयागं मानं तीर्थानां।”
(तीर्थों का राजा प्रयाग है)
गंगा अवतरण
भगीरथ की तपस्या, शिव के जटाओं में गंगा का अवतरण, पाप-नाश शक्तियाँ — इनका अत्यंत सुंदर विवरण है।
राजधर्म
एक आदर्श राजा के गुण:- प्रजा की रक्षा, न्याय, कर निर्धारण, धर्म-पालन, ब्राह्मणों का सम्मान, सेना और कृषि का संरक्षण, सत्य पालन, भोग और साधना का संतुलन, भूमिखंड में यह भी बताया है कि: “राजा के धर्मपरायण होने से वर्षा और अन्न की वृद्धि होती है।”
(3) स्वर्गखंड : देवताओं की कथाएँ (लगभग 800 शब्द)
इस खंड में देवताओं का वर्णन अत्यंत विस्तृत है: इंद्र, वरुण, अग्नि, सूर्य, चंद्र, कुबेर, यम, वायु, अश्विनीकुमार, नक्षत्र देवियाँ,विश्वकर्मा:
मुख्य कथाएँ
समुद्र मंथन
अमृत उत्पत्ति
लक्ष्मी प्रादुर्भाव
गरुड़ की कथा
नारद-मोह कथा
रति-काम कथा
उर्वशी, रम्भा, मेनका की उत्पत्ति
स्वर्ग का वातावरण
नंदन कनन
कल्पवृक्ष
कामधेनु
चैत्य वृक्ष
देवराजसभा
पुराण के अनुसार, स्वर्ग में भी कर्मफल से भय है; देवता भी मृत्युशील हैं।
(4) पातालखंड : नागलोक, दानवकथाएँ (लगभग 700 शब्द)
यह खंड पाताल, नागलोक और दानव वंस की कथाओं पर आधारित है।
पाताल के 7 लोक
अतल
वितल
सुतल
रसातल
तलातल
महातल
पाताल
इनका वर्णन अत्यंत काव्यात्मक है - यह कहा गया है कि ये स्वर्ग से भी सुंदर हैं।

मुख्य कथाएँ;- बलि का शासन, नागों की कथा - वासुकी, शेष, तक्षक, दानवों का वध, महाभारत-संबंधित दानव इतिहास।
(5) उत्तरखंड : भक्ति, रामकथा, शिवमहिमा (लगभग 1500 शब्द)
यह पद्मपुराण का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण हिस्सा है। मुख्य विषय विष्णु की भक्ति, लक्ष्मी तत्त्व, रामकथा, अयोध्या माहात्म्य, शिव और विष्णु का एकत्व, शिवमहिमा, महालक्ष्मीव्रत, तुलसीव्रत, द्वापर और कलियुग की भविष्यवाणी, गीता के सिद्धांतों का विस्तार।
रामकथा
इसमें रामायण का वैकल्पिक वर्णन है: विष्णु का रामरूप में अवतरण रावण-वध, वनवास,सीता-हरण, युद्ध, रामराज्य
विशेष बात सीता को “लक्ष्मी का अवतार” और राम को “नारायण” कहा गया है। शिव और विष्णु की एकता
एक प्रसिद्ध श्लोक:
“शिवो विष्णुरिति ब्रूयात्, विष्णु: शिव इति स्थिरम्।
एको देवो द्विर्नामायो न भेदः परमात्मनि॥”
भावार्थ: शिव और विष्णु में कोई भेद नहीं; दोनों एक ही परम तत्त्व के दो नाम हैं। कलियुग का वर्णन
यह पुराण कलियुग की सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक समस्याओं का भविष्यवाणी-सदृश व्यापक वर्णन करता है:
धर्म की हानि, रिश्वत और लोभ, अन्न की कमी, मनुष्यों की आयु का कम होना, बाढ़, सूखा, युद्ध, अधर्म का बढ़ना
(6) क्रीडाखंड / अध्यात्म खंड (लगभग 600 शब्द)
यह खंड योग, तप, भक्ति, ध्यान और मोक्ष पर आधारित है। आध्यात्मिक विषय,जीवात्मा–परमात्मा का संबंध, योग के चार प्रकार, अवतारवाद, सगुण-निर्गुण भक्ति, मृत्यु के समय आत्मा का मार्ग, मोक्ष के प्रकार, भक्ति योग को सर्वोत्तम कहा है
प्रमुख मंत्र / श्लोक (चयनित)
1. विष्णु स्तुति
“नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्।”
2. लक्ष्मी मंत्र
“ॐ महालक्ष्म्यै नमः।”

3. शिव-विष्णु एकत्व मंत्र
“शिवाय विष्णुरूपाय विष्णवे शिवरूपिणे।”
4. तीर्थ स्तुति
“गंगे चाह यमुने चैव…”
5. राम-नाम का महत्व
“रामनामे समं नास्ति पापहारी महामुनि।”
पद्म पुराण का दार्शनिक महत्व (लगभग 400 शब्द)
इस पुराण का दर्शन चार मुख्य तत्त्वों पर आधारित है:
1. भक्ति
मोक्ष का सर्वोत्तम मार्ग भक्ति है, विशेषकर विष्णु-भक्ति।
2. धर्म
धर्म जीवन की नींव है सत्य, दया, करुणा, संयम, सेवा, दान।
3. कर्म
हर कर्म का फल है।
पुण्य से सुख, पाप से दुख।
4. मोक्ष
अहंकार, वासना और अज्ञान से मुक्ति ही मोक्ष है। पद्म पुराण का सांस्कृतिक महत्व, भारतवर्ष, कौशाम्बी, अयोध्या, प्रयाग, वाराणसी इनका विस्तृत वर्णन, जातीय और सामाजिक संरचना, हिंदू मन्दिर परंपरा, व्रत और पर्व, राम और कृष्ण परंपरा
पद्म पुराण ने हिन्दू समाज की धार्मिक संरचना को मजबूत किया।
निष्कर्ष
पद्म पुराण केवल कथाओं का ग्रंथ नहीं बल्कि धर्म, ज्ञान, योग, भक्ति और मोक्ष का विराट विश्वकोश है।
यह उन ग्रंथों में है जिन्होंने भारतीय संस्कृति को सबसे अधिक प्रभावित किया।

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