शिव पुराण – पूर्ण विस्तृत विवरण (Shiv puran) mahapuran

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शिव पुराण – पूर्ण विस्तृत विवरण (Shiv puran) mahapuran
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 प्रस्तावना
हिन्दू धर्म के अठारह महापुराणों में शिव पुराण एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पूजनीय ग्रंथ है। यह ग्रंथ भगवान शिव की महिमा, लीला, स्वरूप, अवतार, रुद्र रूप, भक्तों की कथाएँ, सृष्टि-उत्पत्ति, तत्त्वज्ञान और धर्म के अनेक सिद्धांतों को अत्यंत सुन्दर रूप में प्रस्तुत करता है। 
व पुराण केवल धार्मिक पुस्तक नहीं है यह योग, तंत्र, दर्शन, भक्तिभाव, नैतिकता और अध्यात्म का विशाल खजाना है।
इस ग्रंथ को पढ़ने से केवल ज्ञान ही नहीं बढ़ता, बल्कि जीवन में शांति, भक्ति, सदाचार और साहस भी आता है। शिव पुराण में जीवन के हर पहलू को स्पर्श किया गया है, धर्म, करुणा, प्रेम, तपस्या, भक्ति, ज्ञान, मोक्ष और सामाजिक व्यवहार आदि। अब आइए पूरे विस्तार से समझते हैं…
शिव पुराण क्या है? शिव पुराण एक प्राचीन हिंदू धार्मिक ग्रंथ है जो त्रिमूर्ति में से भगवान शिव की महिमा का विस्तृत वर्णन करता है। यह ग्रंथ:
शिव के स्वरूप
शिव तत्त्व
लिंग उपासना
रुद्र का अवतरण
सृष्टि की रचना
ब्रह्मांड का विनाश
अवतार एवं लीला
शिव भक्तों की कथाएँ
धर्म, नीति और अध्यात्म
पूजा एवं व्रत-विधान
पवित्र तीर्थों का वर्णन
इन सभी विषयों पर विस्तार से प्रकाश डालता है। यह ग्रंथ भगवान वेदव्यास द्वारा रचित है, और इसे पुराणों का अत्यंत पवित्र, रहस्यपूर्ण एवं दिव्य ग्रंथ माना गया है।
शिव पुराण की रचना किसने और कब की?
रचयिता – महर्षि वेदव्यास
शिव पुराण की रचना महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास ने की। वेदव्यास ने 18 पुराणों की रचना की थी, जिनमें शिव पुराण भी शामिल है। शिव पुराण को मूल रूप से 24,000 श्लोकों के रूप में माना गया है।
रचना काल
वेदों और उपनिषदों के बाद यह पुराण कई शताब्दियों में विकसित हुआ है, लेकिन विद्वानों के अनुसार इसकी रचना का समय: लगभग पहली से पाँचवीं शताब्दी ईस्वी के बीच माना जाता है। कई कथाओं व उपखंडों का उल्लेख इससे भी प्राचीन है।
शिव पुराण की रचना का उद्देश्य
वेद अत्यंत गूढ़ थे, इसलिए आम जन को भगवान शिव के स्वरूप, पूजा विधि, व्रत, कर्म, भक्ति, मोक्ष पथ आदि का सरल ज्ञान कराने के लिए वेदव्यास ने शिव पुराण की रचना की।
शिव पुराण कितने खंडों में विभाजित है? परंपरागत रूप से शिव पुराण 7 संहिताओं में विभाजित है:
1. विद्यान्तर संहिता: शिव तत्त्व, सृष्टि, योग, ध्यान, मुक्ति आदि।
2. रुद्र संहिता: भगवान शिव की लीलाएँ, अवतार, विवाह, कार्तिकेय जन्म, शिव–सति कथा आदि।
3. शतरुद्र संहिता: रुद्र-रूप, विध्वंस, अग्नि तत्त्व, योग रहस्य।
4. कोटिरुद्र संहिता: शिव पूजा विधि, रुद्राभिषेक, लिंग स्थापना आदि।
5. उमासंहिता देवी पार्वती, शिव—शक्ति तत्त्व, विवाह कथा, तपस्या।
6. कैलास संहिता: कैलास के रहस्य, शिवलोक, तीर्थ, ज्ञान-विज्ञान।
7. वायवीय संहिता

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वायु पुराण से संबद्ध कई सिद्धांत, भक्ति मार्ग, वरदान कथाएँ। शिव पुराण में क्या लिखा है? पूर्ण विस्तार अब हम समझेंगे कि शिव पुराण में क्या-क्या वर्णित है।
भाग 1 – सृष्टि की उत्पत्ति, शिव का परम स्वरूप, शिव पुराण बताता है कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति से पहले केवल:
शून्य, अंधकार, केवल शिव का निराकार ब्रह्म स्वरूप मौजूद था।
शिव को अजन्मा, अविनाशी, अनादि, निराकार, सर्वव्यापी बताया गया है। वह कोई देहधारी देवता नहीं, बल्कि स्वयं: चिदानन्द, चैतन्य, कर्मातीत, योगियों के योगेश्वर हैं।
शिव पुराण का एक प्रमुख सिद्धांत:
शिव ही सृष्टि के आदिकारण हैं, और सृष्टि के प्रलयकारक भी। शिव को "महाकाल" कहा गया है जो समय के भी स्वामी हैं।
भाग 2 – शिव तत्त्व और उनका दार्शनिक स्वरूप, शिव पुराण शिव को पाँच प्रमुख तत्त्वों में परिभाषित करता है:
1. शिव – परम ब्रह्म
2. शक्ति – ऊर्जा, सृजन शक्ति
3. रुद्र – संहारक
4. महेश्वर – सर्वज्ञ
5. सदाशिव – करुणा और कृपा स्वरूप
इसके अनुसार, शिव व शक्ति दोनों अलग नहीं हैं। वे एक ही तत्व के दो पहलू हैं। यही “अर्द्धनारीश्वर” का सिद्धांत है। यहाँ शिव को तीन सर्वोच्च शक्तियों के साथ जोड़ा गया है:
इच्छा शक्ति
ज्ञान शक्ति
क्रिया शक्ति, इन्हीं तीन शक्तियों से संसार की रचना, पालन और संहार होता है।
भाग 3 – शिव का रूद्र रूप
शिव पुराण में 11 रुद्रों का उल्लेख है: कपाली, पिंगल, भीम, विरूपाक्ष, विलोहित, शिव, शम्भु, भव, चन्द्र, रवि, अवन्ति
रुद्र मूलतः अज्ञान, पाप और अधर्म का नाश करने वाले दिव्य रूप हैं।
भाग 4 – शिव की लीलाएँ, अवतार और कथाएँ
1. ब्रह्मा–विष्णु विवाद और शिवलिंग का प्रादुर्भाव
शिव पुराण के अनुसार: ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता पर विवाद हुआ, तब अनन्त ज्योति-स्तंभ (ज्योतिर्लिंग) प्रकट हुआ जिसे न आरम्भ था, न अंत, वह शिव का अनन्त स्वरूप था।
2. सती और दक्षिणेश्वर कथा:
सती ने शिव से विवाह किया, दक्ष ने यज्ञ में अपमान किया, सती ने योगाग्नि से देह त्याग दी, शिव क्रुद्ध हुए, वीरभद्र उत्पन्न किया, दक्ष का यज्ञ नष्ट हुआ। यह कथा अभिमान, अपमान और भक्ति की गहराई को दिखाती है।
3. पार्वती की तपस्या और विवाह: पार्वती ने शिव को पाने के लिए हजारों वर्षों तक तप किया, शिव ने परीक्षाएँ लीं, अंततः विवाह हुआ, उनका पुत्र हुआ कार्तिकेय और गणेश
भाग 5 – शिव के प्रमुख अवतार
शिव पुराण में शिव के 19 अवतार बताए गए हैं: वीरभद्र, नंदी, भैरो, कालभैरव, यतिनाथ, महेश, पिप्पलाद, अश्वत्थामा, हनुमान, कृष्णदर्शन, दुर्वासा आदि।
विशेषतः हनुमान को शिव का रुद्र अवतार माना गया है।

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भाग 6 – शिव पूजा, लिंग स्थापना और व्रत
शिव पुराण विस्तृत तरीके से सिखाता है: शिवलिंग कैसे स्थापित करें, किस प्रकार अभिषेक करें। दूध,दही
घी, शहद, गंगाजल, बेलपत्र, धतूरा, भांग कौन से मंत्र से पूजा करें।
(नीचे मंत्र दिए हैं)
कौन से व्रत करें:- सोमव्रत, प्रदोष व्रत, महाशिवरात्रि, श्रावण मास
कौन से फल मिलते हैं?:- मनोकामना सिद्धि, क्लेशो से मुक्ति, मन की शांति, पापों का क्षय, परिवार का कल्याण और मोक्ष।
भाग 7 – योग व अध्यात्म
शिव पुराण के अनुसार: “योगी ही शिव के सच्चे उपासक हैं।”
शिव योग का आदि स्रोत हैं: हठ योग, राज योग, तंत्र, कुंडलिनी, ध्यान, मौन, समाधि, इन सभी का मूल शिव से माना गया है। शिव पुराण कहता है कि शरीर में सात चक्र और इड़ा–पिंगला–सुषुम्ना नाड़ियों का ज्ञान शिव द्वारा दिया गया।
भाग 8 – तीर्थ, पवित्र स्थल और ज्योतिर्लिंग, शिव पुराण में 12 ज्योतिर्लिंगों का महत्व बताया गया है:
सोमनाथ, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारनाथ, काशी विश्वनाथ, त्र्यंबकेश्वर,मल्लिकार्जुन, भीमाशंकर, वैद्यनाथ,, नागेश्वर, रामेश्वर, घृष्णेश्वर, इनकी उत्पत्ति कथाएँ भी इस पुराण में मिलती हैं।
9 शिव दर्शन और मोक्ष मार्ग शिव पुराण में मोक्ष के तीन मार्ग बताए गए हैं:
1. ज्ञान योग: आत्मा का ब्रह्म से एकत्व।
2. भक्ति योग: शिव के प्रति समर्पण।
3. कर्म योग
अहंकार-रहित कर्म। मोक्ष तब मिलता है जब, मन शांत हो, वासना समाप्त हो, द्वेष मिट जाए, अहंकार खत्म हो, हृदय पवित्र बने
शिव पुराण कहता है: “शिव भक्ति से बिना किसी योग, तपस्या, वेद अध्ययन के भी मोक्ष संभव है।”
शिव पुराण के प्रमुख मंत्र (बहुत महत्वपूर्ण)
1. पंचाक्षरी मंत्र
ॐ नमः शिवाय
यह शिव का सबसे महत्वपूर्ण मंत्र है।
2. महामृत्युंजय मंत्र
"ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥"

3. रुद्राष्टक मंत्र (तुलसीदास कृत)
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपम्…

4. लिंगाष्टकम
ब्रह्ममुरारिसुरार्चित लिङ्गम्
निर्मलभासितशोभित लिङ्गम्…

5. शिव ताण्डव स्तोत्र (रावण कृत)
जटाटवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थल
6. शिव गायत्री मंत्र
"ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्"
शिव पुराण पढ़ने/सुनने का फल (Benefits)
✔ पाप नष्ट होते हैं
✔ पितृ दोष से मुक्ति
✔ अकाल मृत्यु का निवारण
✔ परिवार में सुख-शांति
✔ कर्ज मुक्ति
✔ नौकरी/धंधे में सफलता
✔ मनोकामना सिद्धि
✔ मानसिक शांति
✔ जीवन में साहस
✔ आध्यात्मिक उन्नति
✔ मोक्ष प्राप्ति
शिव पुराण का प्रमुख उद्देश्य है:
1. शिव तत्त्व का ज्ञान देना कि शिव केवल देवता नहीं — वे ब्रह्म हैं।
2. शिव भक्ति को सरल बनाना ताकि आम व्यक्ति भी शिव भक्ति कर सके।
3. धर्म, नीति और अध्यात्म की शिक्षा जीवन को नैतिक और खुशहाल बनाने के लिए।
4. शिव–शक्ति की एकता समझाना ब्रह्मांड स्त्री और पुरुष ऊर्जा से चलता है।
5. मोक्ष मार्ग दिखाना कैसे शांति, ज्ञान, भक्ति से मुक्ति मिलती है।
6. जीवन के उतार–चढ़ाव को स्वीकारना शिव दिखाते हैं कि: तपस्या, त्याग, संयम, साहस
से हर कठिनाई पार हो सकती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
शिव पुराण केवल धार्मिक नहीं — दार्शनिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी अद्वितीय ग्रंथ है। इसमें जीवन, मृत्यु, योग, भक्ति, नीति, धर्म, ब्रह्मांड, ऊर्जा, मानव स्वभाव और मोक्ष—सभी विषयों का अत्यंत विस्तृत वर्णन किया गया है।
इस ग्रंथ का अध्ययन व्यक्ति को: शांत, संयमी, भक्त, ज्ञानी विवेकशील और अंत में मोक्ष प्राप्ति के योग्य बनाता है।
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