गुरु बृहस्पति: महिमा, कथा व पूजा विधि (मंत्र सहित)

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         गुरु बृहस्पति: महिमा, कथा व पूजा विधि (मंत्र सहित)

गुरु बृहस्पति: महिमा, कथा व पूजा विधि (मंत्र सहित)
हिंदू धर्म में देवगणों के आचार्य, ज्ञान और धर्म के प्रतीक गुरु बृहस्पति का स्थान अत्यंत ऊँचा माना गया है। वे न केवल देवताओं के गुरु हैं, बल्कि ज्योतिष में एक शुभ ग्रह, वेदों के ज्ञाता, धर्म और नीति के रक्षक तथा आध्यात्मिक मार्गदर्शक भी हैं। किसी व्यक्ति के जीवन में ज्ञान, बुद्धि, संतान, विवाह, अध्यात्म, भाग्य, धर्म और सम्मान जैसी चीज़ें बृहस्पति की कृपा से जुड़ी मानी जाती हैं। इसलिए गुरुवार का दिन बृहस्पति देव के पूजन और व्रत का विशेष दिन माना जाता है।

यह लेख गुरु बृहस्पति की पहचान, स्वरूप, महिमा, जन्म कथा, गुरुवार व्रत, पूजा-विधि और मंत्रों की संपूर्ण जानकारी सरल भाषा में प्रस्तुत करता है।

👉 गुरु बृहस्पति कौन हैं?

हिंदू शास्त्रों के अनुसार गुरु बृहस्पति देवताओं के आध्यात्मिक गुरु और नैतिक मार्गदर्शक हैं। वे महर्षि अंगिरा के पुत्र हैं, जो स्वयं ब्रह्मा के मानस पुत्र माने जाते हैं।

वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति को सबसे कल्याणकारी ग्रह माना गया है।

यह ज्ञान, शिक्षा, अध्यात्म, सदाचार, धन, संतान और सौभाग्य का कारक है।

👉 उनका पसंदीदा दिन – गुरुवार
रंग – पीला
रत्न – पुखराज
देवी – सरस्वती
वृक्ष – पीपल
फल – केला
ध्यान मंत्र – ॐ बृहस्पतये नमः

👉 गुरु बृहस्पति का स्वरूप

शास्त्रों में उनका वर्णन पीताम्बर वस्त्र धारण किए, सौम्य और तेजस्वी रूप में किया गया है। उनके हाथ में वेद, माला, दंड और जलपात्र होते हैं। उनका वाहन हाथी या सिंह माना जाता है।

                      गुरु बृहस्पति: महिमा, कथा व पूजा विधि (मंत्र सहित)

1. ज्ञान और विद्या के अधिष्ठाता
छात्र, अध्यापक और साधक इन्हें अपना इष्ट देव मानते हैं।

2. सभी देवताओं के गुरु
देवता किसी भी संकट में बृहस्पति से मार्गदर्शन लेते हैं।

3. ज्योतिष में सर्वश्रेष्ठ शुभ ग्रह
विवाह, संतान, धन, सम्मान—सब पर इनका प्रभाव माना जाता है।

4. घर-परिवार में सुख और समृद्धि का कारक
जिन पर बृहस्पति की कृपा रहती है उनके जीवन में स्थिरता और शांति रहती है।

5. अध्यात्म की ओर प्रेरित करने वाले देव                           

👉 गुरु बृहस्पति की प्रसिद्ध कथा

देवताओं और असुरों के युद्ध में जब देवगण कमजोर पड़ गए, महर्षि अंगिरा ने अपने तेजस्वी पुत्र बृहस्पति को देवताओं का मार्गदर्शन करने भेजा। बृहस्पति के ज्ञान और नीति ने देवताओं को विजय दिलाई। इंद्र ने उन्हें “देवताओं का गुरु” घोषित किया।

गुरुवार व्रत की महिमा

गुरुवार के व्रत से:

  • विवाह में बाधाएँ दूर होती हैं
  • संतान प्राप्ति होती है
  • धन और सम्मान बढ़ता है
  • शिक्षा और करियर में सफलता मिलती है
  • पितृ दोष और गुरु दोष शांत होते हैं
गुरु बृहस्पति के मंत्र

1. मूल मंत्र: ॐ बृहस्पतये नमः

2. बीज मंत्र: ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः

3. वैदिक मंत्र:
देवो देवस्य देवस्य ब्रह्मविष्णुशिवात्मकः।
बृहस्पते नमस्तुभ्यं त्रैलोक्यं फलदायकः॥

4. ग्रह शांति मंत्र: ॐ गुरवे नमः, ॐ ब्रहस्पतये नमः

                              गुरु बृहस्पति: महिमा, कथा व पूजा विधि (मंत्र सहित)

पूजन सामग्री:
पीली वस्तुएँ, पीला वस्त्र, पीला फूल, हल्दी, चने की दाल, गुड़, केला, घी का दीपक, जल, तुलसी, शंख या तस्वीर।

👉 स्टेप-बाय-स्टेप विधि:

  1. स्नान कर पीले वस्त्र पहनें
  2. पूजा स्थान तैयार करें
  3. दीप व धूप जलाएँ
  4. जल व अक्षत अर्पित करें
  5. पीले फूल, केला, चना, गुड़ चढ़ाएँ
  6. 108 बार “ॐ बृहस्पतये नमः” जप करें
  7. व्रत नियमों का पालन करें
  8. कथा सुनें
  9. आरती करें

व्रत नियम:
नमक न खाएँ, पीली वस्तु का उपयोग करें, झाड़ू न लगाएँ, बाल न धोएँ।

गुरुवार व्रत कथा (संक्षेप)

एक गरीब ब्राह्मण स्त्री साधु के कहने पर गुरुवार व्रत करती है और उसके घर में समृद्धि आती है। पड़ोसन नियम तोड़ती है और कष्ट बढ़ते हैं। कथा बताती है कि नियम से किया व्रत ही फल देता है।

बृहस्पति दोष क्या है?

कमजोर बृहस्पति से विवाह रुकना, संतान बाधा, शिक्षा में रुकावट, भाग्य कमजोर होना, आर्थिक परेशानी आदि हो सकती हैं।

उपाय:

  • गुरुवार को पीली वस्तु दान करें
  • गुरु, माता-पिता का सम्मान करें
  • पीपल पर जल अर्पित करें
  • “ॐ बृहस्पतये नमः” जप करें
  • गाय को गुड़ व चने खिलाएँ
  • गरीब ब्राह्मण की मदद करें
समापन

गुरु बृहस्पति ज्ञान, धर्म, अध्यात्म और सफलता के अधिष्ठाता देव हैं। सच्ची श्रद्धा से पूजा करने पर जीवन में ज्ञान, सम्मान, प्रेम और समृद्धि बढ़ती है।

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