रुद्राक्ष पहनने के नियम (शास्त्रसम्मत, विवरण) rudraksh

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 रुद्राक्ष पहनने के नियम (शास्त्रसम्मत, विवरण) rudraksh

रुद्राक्ष पहनने के शास्त्रीय नियम दर्शाती पवित्र शिव आराधना की छवि


रुद्राक्ष केवल एक बीज या आभूषण नहीं है, बल्कि यह साक्षात शिव-तत्व का प्रतीक माना गया है। शास्त्रों में रुद्राक्ष को “देवताओं का आभूषण” कहा गया है। 
यह साधक के लिए कवच, साधना-सहायक और आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत होता है। परंतु रुद्राक्ष तभी फल देता है जब उसे शास्त्रों में बताए गए नियमों के अनुसार धारण किया जाए। नियमों की उपेक्षा करने पर उसका प्रभाव क्षीण हो जाता है।
इस लेख में रुद्राक्ष पहनने से जुड़े 'सभी आवश्यक नियम', उनकी 'आध्यात्मिक व्याख्या', तथा "शास्त्रीय मर्यादा" को विस्तार से समझाया गया है।
 रुद्राक्ष क्या है? (शास्त्रीय दृष्टि)
शिव पुराण के अनुसार, एक बार भगवान शिव समाधि में लीन थे। जब उन्होंने नेत्र खोले, तब उनकी आँखों से जो अश्रु पृथ्वी पर गिरे, वही रुद्राक्ष बने। “रुद्रस्य अक्षि सम्भूतं तस्मात् रुद्राक्ष उच्यते।” अर्थात् रुद्र (शिव) के नेत्रों से उत्पन्न होने के कारण इसे रुद्राक्ष कहा गया। इसलिए रुद्राक्ष को शिव का जीवित अंश माना गया है।
रुद्राक्ष धारण करने का मूल उद्देश्य
रुद्राक्ष धारण करने के पीछे केवल सांसारिक लाभ नहीं, बल्कि गहरे आध्यात्मिक उद्देश्य होते हैं: मन की चंचलता को शांत करना, नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा, जप-तप में एकाग्रता, ग्रह दोषों का शमन, शिव कृपा की प्राप्ति पर यह सब तभी संभव है जब रुद्राक्ष को विधि और नियम से पहना जाए।
रुद्राक्ष पहनने से पहले के नियम
शुद्धता का नियम: रुद्राक्ष धारण करने से पूर्व शरीर और मन की शुद्धता अनिवार्य है। स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनें सात्विक भोजन करें मदिरा, मांस, तामसिक आहार से बचें, मन में श्रद्धा और विश्वास रखें, शास्त्रों में कहा गया है कि अशुद्ध शरीर से धारण किया गया रुद्राक्ष निष्फल हो जाता है।
रुद्राक्ष का संस्कार (प्राण प्रतिष्ठा)
बिना संस्कार किया गया रुद्राक्ष केवल एक बीज होता है। संस्कार विधि का सार: रुद्राक्ष को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएँ, पंचामृत से अभिषेक करें, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें
“ॐ नमः शिवाय” मंत्र का 108 बार जप करें यह प्रक्रिया रुद्राक्ष को ऊर्जावान और जाग्रत करती है। रुद्राक्ष पहनने का शुभ समय शास्त्रों में कुछ विशेष समय बताए गए हैं:
सोमवार (शिव का प्रिय दिन)
मासिक शिवरात्रि
महाशिवरात्रि
श्रावण मास
प्रातः ब्रह्ममुहूर्त

इन समयों में धारण किया गया रुद्राक्ष शीघ्र फल देता है।
रुद्राक्ष पहनने की सही विधि
गले में धारण करना, रुद्राक्ष को लाल या काले धागे में पिरोएँ गले में हृदय के समीप रहे अधिकतर साधकों के लिए यही सर्वोत्तम है, कलाई में धारण करना: 
दाहिने हाथ में (पुरुष)
बाएँ हाथ में (स्त्री)
विशेषकर 1, 5, 7 मुखी रुद्राक्ष

मुख के अनुसार रुद्राक्ष पहनने के नियम (संक्षेप)

1 मुखी – केवल योग्य साधक या गुरु निर्देश से
5 मुखी – सभी के लिए सुरक्षित
6 मुखी – ब्रह्मचर्य पालन आवश्यक
8 मुखी – भय नाशक
9 मुखी – शक्ति साधना के लिए
11 मुखी – रक्षा कवच
14 मुखी – गुरु के निर्देश से ही
रुद्राक्ष पहनते समय निषेध 
(बहुत महत्वपूर्ण) अपवित्र अवस्था में न पहनें, श्मशान, मदिरापान, अशुद्ध क्रिया के समय, शौच के समय निकाल देना उत्तम, तामसिक जीवन से बचें शास्त्र कहते हैं: जो व्यक्ति रुद्राक्ष धारण कर पाप कर्म करता है, उसका दोष कई गुना बढ़ जाता है।
स्त्री-पुरुष के लिए नियम
स्त्रियाँ मासिक धर्म में रुद्राक्ष उतार सकती हैं,गर्भावस्था में पहनना निषिद्ध नहीं है, श्रद्धा प्रधान है, भय नहीं।
रुद्राक्ष की देखभाल के नियम
समय-समय पर जल या गंगाजल से शुद्ध करें
तेल (सरसों/तिल) लगाना लाभकारी
टूटे या खंडित रुद्राक्ष का त्याग करें

क्या रुद्राक्ष सोते समय पहन सकते हैं?

हाँ, पहन सकते हैं। परंतु यदि भारी माला हो तो सोते समय उतार देना उचित है। रुद्राक्ष और मंत्र का संबंध रुद्राक्ष बिना मंत्र के भी प्रभावी है, परंतु मंत्र के साथ यह अत्यंत शक्तिशाली हो जाता है।
सर्वमान्य मंत्र: ॐ नमः शिवाय
शास्त्रों में रुद्राक्ष का फल
शिव पुराण, पद्म पुराण और स्कंद पुराण में उल्लेख है: रुद्राक्ष धारण करने वाला व्यक्ति अकाल मृत्यु से बचता है, भय मुक्त होता है अंत समय शिवलोक को प्राप्त करता है
निष्कर्ष (शास्त्रीय सार)
रुद्राक्ष श्रद्धा, नियम और मर्यादा का विषय है। यह कोई फैशन नहीं, बल्कि आध्यात्मिक अनुशासन है। जो व्यक्ति:
नियमपूर्वक श्रद्धा से शिव भाव में रुद्राक्ष धारण करता है, उसके जीवन में शांति, सुरक्षा और साधना की सिद्धि निश्चित होती है।
                                                    केवल योग्य साधक या गुरु निर्देश से
शिवलिंग के समीप रखा पवित्र रुद्राक्ष, सनातन धर्म में रुद्राक्ष का महत्व
2 मुखी रुद्राक्ष                                                                                                                                                
शिव–शक्ति स्वरूप (अर्धनारीश्वर)                                                                                                                    
दांपत्य जीवन में सामंजस्य लाता है                                                                                                                 
पति-पत्नी के संबंध सुधारता है                                                                                                                            
मनोवैज्ञानिक द्वंद्व को शांत करता है                                                                                                                 
शास्त्रीय भाव: द्वैत से अद्वैत की ओर
3 मुखी रुद्राक्ष
अग्नि तत्व का प्रतिनिधि
पुराने पाप, ग्लानि और मानसिक बोझ से मुक्ति
आत्मविश्वास बढ़ाता है
जप-तप करने वालों के लिए उपयोगी
4 मुखी रुद्राक्ष
बुद्धि, वाणी और स्मरण शक्ति बढ़ाता है
ब्रह्मा तत्व से जुड़ा
7 मुखी रुद्राक्ष
लक्ष्मी तत्व से संबंधित
दरिद्रता नाशक
आर्थिक स्थिरता देता है
परिश्रमशील और नैतिक व्यक्ति के लिए ही फलदायी
10 मुखी रुद्राक्ष
देवता: विष्णु
ग्रह दोषों से रक्षा
नकारात्मक ऊर्जा का नाश
जीवन में संतुलन लाता है
12 मुखी रुद्राक्ष
देवता: सूर्य
नेतृत्व क्षमता
आत्मविश्वास और तेज
सरकारी कार्य, राजनीति में सहायक
13 मुखी रुद्राक्ष
देवता: इंद्र / कामदेव तत्व
आकर्षण, वाणी और प्रभाव
साधना में सिद्धि
भोग और योग का संतुलन

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