प्रदोष व्रत पूजा विधि मंत्र, लाभ, और महत्व
प्रदोष व्रत क्या है?
प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित एक अत्यंत पुण्यदायी व्रत है। यह व्रत हर महीने शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है।
शास्त्रों के अनुसार, त्रयोदशी की संध्या बेला को प्रदोष काल कहा जाता है, जो सूर्यास्त के बाद लगभग 1.5 घंटे तक रहता है। यही समय शिव पूजा के लिए सबसे श्रेष्ठ माना गया है।
प्रदोष व्रत केवल उपवास नहीं है, बल्कि यह पापों के क्षय, कष्टों की शांति और जीवन में संतुलन लाने का साधन है।
शास्त्रों के अनुसार, त्रयोदशी की संध्या बेला को प्रदोष काल कहा जाता है, जो सूर्यास्त के बाद लगभग 1.5 घंटे तक रहता है। यही समय शिव पूजा के लिए सबसे श्रेष्ठ माना गया है।
प्रदोष व्रत केवल उपवास नहीं है, बल्कि यह पापों के क्षय, कष्टों की शांति और जीवन में संतुलन लाने का साधन है।
प्रदोष व्रत की शुरुआत कैसे हुई? (उत्पत्ति कथा)
प्राचीन काल में जब समुद्र मंथन हुआ, तब उसमें से अनेक रत्नों के साथ कालकूट विष भी निकला। यह विष इतना तीव्र था कि संपूर्ण सृष्टि के विनाश का खतरा उत्पन्न हो गया। देवताओं और असुरों ने मिलकर भगवान शिव से प्रार्थना की।
भगवान शिव ने संपूर्ण जगत की रक्षा हेतु उस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। विष का प्रभाव कम करने के लिए देवताओं ने त्रयोदशी की संध्या को शिव की आराधना की।
भगवान शिव ने संपूर्ण जगत की रक्षा हेतु उस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। विष का प्रभाव कम करने के लिए देवताओं ने त्रयोदशी की संध्या को शिव की आराधना की।
भगवान शिव प्रसन्न हुए और वरदान दिया कि जो भी भक्त त्रयोदशी की संध्या में श्रद्धा से मेरा पूजन करेगा, उसके समस्त कष्ट दूर होंगे। यहीं से प्रदोष व्रत की परंपरा आरंभ हुई।
प्रदोष व्रत क्यों करना चाहिए?
प्रदोष व्रत केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि जीवन को सही दिशा देने वाला व्रत है।
प्रदोष व्रत केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि जीवन को सही दिशा देने वाला व्रत है।
प्रदोष व्रत करने के मुख्य कारण:
पाप कर्मों से मुक्ति, मानसिक तनाव और भय से राहत, ग्रह दोषों की शांति, शिव कृपा से जीवन में स्थिरता, रोग, ऋण और शत्रु बाधा का नाश, विवाह और संतान संबंधी बाधाओं का समाधान, शास्त्रों में कहा गया है कि प्रदोष व्रत करने वाला व्यक्ति शिवलोक का अधिकारी बनता है।
प्रदोष व्रत कब रखा जाता है? (तारीख कैसे जानें), प्रदोष व्रत हर महीने दो बार आता है:
कृष्ण पक्ष त्रयोदशी
शुक्ल पक्ष त्रयोदशी
यदि त्रयोदशी:
कृष्ण पक्ष त्रयोदशी
शुक्ल पक्ष त्रयोदशी
यदि त्रयोदशी:
सोमवार को आए → सोम प्रदोष
शनिवार को आए → शनि प्रदोष (अत्यंत फलदायी)
शनिवार को आए → शनि प्रदोष (अत्यंत फलदायी)
तारीख जानने के लिए पंचांग या कैलेंडर देखना चाहिए।
प्रदोष व्रत की तैयारी
प्रदोष व्रत की तैयारी
व्रत से एक दिन पहले:
सात्विक भोजन करें, मन, वचन और कर्म से संयम रखें, नकारात्मक विचारों से दूरी बनाएँ
व्रत के दिन:
प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठें, स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें, भगवान शिव का ध्यान करें, प्रदोष व्रत पूजा विधि (क्रमबद्ध और शुद्ध),
प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठें, स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें, भगवान शिव का ध्यान करें, प्रदोष व्रत पूजा विधि (क्रमबद्ध और शुद्ध),
नीचे पूरी विधि दी जा रही है, जिसे आप घर पर सरलता से कर सकते हैं। आसन ग्रहण मंत्र, पूजा से पहले आसन पर बैठते समय मन में यह भाव रखें:-
मंत्र:
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवी पवित्रं कुरु चासनम्॥
त्वं च धारय मां देवी पवित्रं कुरु चासनम्॥
संकल्प मंत्र, दाहिने हाथ में जल, पुष्प और अक्षत लेकर संकल्प लें
मम उपात्त समस्त पाप क्षय द्वारा
श्रीपरमेश्वर प्रीत्यर्थं प्रदोष व्रतं करिष्ये।
श्रीपरमेश्वर प्रीत्यर्थं प्रदोष व्रतं करिष्ये।
शिवलिंग अभिषेक
जल
दूध
दही
शहद
घी, अर्पित करें।
दही
शहद
घी, अर्पित करें।
अभिषेक मंत्र:
ॐ नमः शिवाय।, बेलपत्र अर्पण मंत्र, बेलपत्र शिव को अत्यंत प्रिय है।मंत्र:
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधम्।
त्रिजन्म पापसंहारं बिल्वपत्रं शिवर्पणम्॥
त्रिजन्म पापसंहारं बिल्वपत्रं शिवर्पणम्॥
धूप-दीप अर्पण, दीपक जलाकर संध्या समय शिव पूजन करें।
दीप मंत्र:
ॐ दीप ज्योति: परं ब्रह्म
दीप सर्व तमोपह।
प्रदोष काल विशेष मंत्र जप, प्रदोष काल में कम से कम 108 बार जप करें
ॐ दीप ज्योति: परं ब्रह्म
दीप सर्व तमोपह।
प्रदोष काल विशेष मंत्र जप, प्रदोष काल में कम से कम 108 बार जप करें
मंत्र:
ॐ नमः शिवाय
या
महामृत्युंजय मंत्र
ॐ नमः शिवाय
या
महामृत्युंजय मंत्र
प्रदोष व्रत कथा
पूजा के अंत में प्रदोष व्रत की कथा अवश्य सुनें या पढ़ें। कथा सुनने से व्रत पूर्ण माना जाता है।, आरती और प्रार्थना
अंत में शिव आरती करें और क्षमा याचना करें।
प्रार्थना:
प्रदोष व्रत के नियम
दिनभर उपवास रखें (फलाहार स्वीकार्य), क्रोध, झूठ और निंदा से दूर रहें, ब्रह्मचर्य का पालन करें, सूर्यास्त के बाद पूजा करें, अगले दिन पारण करें
प्रमुख लाभ:
सभी मनोकामनाओं की पूर्ति, दरिद्रता और आर्थिक संकट का नाश, रोगों में कमी, शत्रुओं पर विजय, भय, चिंता और अवसाद से मुक्ति, मृत्यु के बाद सद्गति, विशेष रूप से शनि प्रदोष करने से शनि दोष शांत होता है।
प्रदोष व्रत किसे करना चाहिए?
जो जीवन में बार-बार बाधाओं से परेशान हैं, जिनकी मेहनत का फल नहीं मिल रहा, जिनके विवाह या संतान में देरी हो रही, जो मानसिक तनाव से ग्रस्त हैंनिष्कर्ष
प्रदोष व्रत केवल परंपरा नहीं, बल्कि शिव से जुड़ने का सीधा मार्ग है। यह व्रत सिखाता है कि जब जीवन विष से भर जाए, तब श्रद्धा और भक्ति ही अमृत बनती है।
जो भक्त सच्चे मन से प्रदोष व्रत करता है, उसके जीवन में भगवान शिव स्वयं मार्गदर्शन करते हैं।
जो भक्त सच्चे मन से प्रदोष व्रत करता है, उसके जीवन में भगवान शिव स्वयं मार्गदर्शन करते हैं।

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